आज
सुबह आलस के चलते साइकिल नहीं चलाई।शाम को निकले गद्दी पर हाथ मारकर धूल
झाड़ते हुए। इस्टार्ट करते ही रिम और सड़क की दूरी कम होती लगी। पता चला हवा
कम थी। शायद सुबह चलाई नहीं तो गुस्से में हवा बाहर फेंक दी पहिए ने।
बहरहाल हवा भरवाई। शारदा मन्दिर के पास। साईकिल वाले भाई जी ने बताया कि पहले इंद्रानगर में थे दूकान। अब यहां 700 रूपये के किराये पर हैं तीन साल से। बोले-साईकिल लोगों ने रखना कम कर दिया। आमदनी कम हो गयी है। दोनों पहियों की हवा के 4 रूपये। बकाया चार रुपया देने के लिए जेब से मसाला पाउच की थैली से रेजगारी निकाल के लिए। मसाला खाते नहीं लेकिन मसाला पाउच की थैली के उपयोग का सार्थक उपयोग में क्यों चूकें।
रांझी होते हुए खमरिया की तरफ आये। हम बाएं रास्ता देखते हुए आ रहे थे। थोड़ा ज्यादा ही बांये देख गए शायद। यह एहसास तब हुआ जब 'सडक़ सभा' कर रही गायों में से एक से साईकिल भिड़ंत हो गयी।वो तो कहिये भिड़ंत हल्की थी और गायें शरीफ तथा आसपास किसी चैनल की कोई ओबीवैन नहीं गुजर रही थी वरना अब तक आप घटना का विवरण किसी चैनल पर देख रहे होते।
आगे फिर एक बार बीच सड़क पर रखे अवरोध से भिड़ते हुए बचे। 'सावधान' लिखे हुये बैरियर इतनी सफाई और सावधानी से अँधेरे में रखे हुए थे कि उनसे बचने का मतलब यही माना जाएगा कि वाहन चालक फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।
हम सब खतरों से बचते-बचाते खमरिया के अतिथि गृह पहुंचे जहां हमारे भूतपूर्व वरिष्ठ महाप्रबन्धक विज्ञान शंकर, जी जो कि आयुध निर्माणी बोर्ड से मेंम्बर होकर 2004 में रिटायर हुए, से मुलाकात हुई। साहब ओ ऍफ़ सी, कानपुर में हमारे वरिष्ठ महाप्रबन्धक थे। उस समय की कई यादें और उसके बाद और पहले की अनगिनत यादें हम लोगों के साथ की हैं।
11 साल हो गए उनको रिटायर हुए। हमारे कालेज के पहले बैच के छात्र होने के नारे वे हमारे डबल सीनियर हुए। अब तो हमारे बुजुर्ग की हैसियत से भी आदरणीय हैं। हमारी किताब 'पुलिया पर दुनिया' उन्होंने ईबुक खरीद कर पढ़ी। वैसे भी बताते हैं कि मैडम और साहब हमारा लिखा पढ़ते रहते हैं। ऐसा सीनियर और बुजुर्ग जब तारीफ करे जिसका स्वयं भाषा पर जबरदस्त अधिकार हो तो खुशनुमा तो लगता है लेकिन यह भी लगता है कि जहां चूक होती होगी वहां मुस्कराते हुए देखते भी होंगे।
साहब की सबसे बड़ी खासियत उनकी सहजता है। कार्यकाल के दौरान 'साधारण लोगों' पर उनका असाधारण विश्वास रहा।उत्पादन के मामले में कई उपलब्धियां उनके नाम हैं। यह अलग बात है कि कई मौकों पर उनका श्रेय और फायदा चतुर लोगों ने झपटा।उनकी यादों को साझा करने की बात मैं जब भी उनसे कहता हूँ तो वे कहते हैं- मैं जिन बातों को भूल जाना चाहता हूँ आप उनको मुझसे फिर से याद करने के लिए कह रहे हैं।
हमने साहब से आग्रह किया कि आपकी टिकट बुक करा दें आप लोग सिनेमा देख आइये। लेकिन साहब ने कहा- आप साथ में चलिए तो चले। लेकिन हम दिन में दफ्तर रहे और शाम को साहब के साथ रहे साथी अपने घर ले गए सो सनीमा स्थगित रहा।
खमरिया से लौटे तो रांझी में अपने कॉलेज के एक और सीनियर डा. शुक्ला के दवाखाने होते हुए आये। शुक्ल जी मोतीलाल से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अपने शौक के चलते होम्योपैथिक डाक्टर हो गए। 23-24 साल से प्रैक्टिस कर रहे। जिस दुकान से साइकिल खरीदी वह बता रहा था -'बन्दा इंटेलिजेंट है। बिहार तक से मरीज आते हैं इसके पास।'
काबिलियत की बात तो खैर मरीज जाने लेकिन शुक्ल जी के बचपन के साथी रहे राजगोपाल जी ने बताया कि शुक्ल जी 'बचपन में' बड़े शरारती थे और अपने मोहल्ले की एक बंगाली लड़की को बचपन में चिढ़ाते थे। शुक्ल जी ने इस आरोप को गरिमापूर्वक स्वीकार करते हुए अपनी शरारतों के कुछ किस्से बयान किये। हमने सुझाव दिया कि 'बचपन में' के स्थान पर 'बचपन से' कहना अधिक समीचीन और सत्य के निकट होगा। शुक्लजी ने उदारता का परिचय देते हुए संसोधन स्वीकार कर लिया।
शुकुल जी की दूकान पर चाय पीते हुए गपियाये। किताब 'पुलिया पर दुनिया' हाथ में थी हमारे । हम उसको दिखाने को ले गए थे विज्ञान शंकर जी को।किताब देखकर डाक्टर साहब ने अपने से सम्बंधित पन्ना व्हाट्सऐप पर मंगा लिया इस वायदे के साथ कि वे किताब ई बुक खरीदेंगे।
शुक्ल जी के यहां चले तो नाई की दुकान दिखी तो ब्रेक मारे साइकिल को। बाल कटवाते हुए सोचा कि सेल्फी ले लें और पोस्ट करें। लेकिन यह सोचकर नहीं किये कि जिन लोगों ने दो दिन पहले हमारी फोटो लाइक करते हुए वाह वाही टिप्पणियॉ दी हैं वे लोग हमारी 'सेल्फी शक्ल ' देखकर कहीं अपनी लाइक वापस लेते हुए कमेंट मिटा न दें। दूसरा खतरा यह भी कि बाल कटी सेल्फी देखकर घरवाला कोई न कोई जरूर टोंकता बाल इत्ते छोटे क्यों करवाये, डाई क्यों नहीं कराया, कलम इतनी क्यों। सिर्फ एक सेल्फी के लालच से बचकर हम इतने सवालों के जबाब देने से बचे।
बाल कटाकर जब लौटे तो रांझी मोड़ पर बिना हेडलाइट वाले स्कूटर वाले न मेरे बगल से गुजरते हुए कहा-देखकर नहीं चलते। जिस तरह सड़क पर गाड़ियों की गुंडागर्दी बढ़ रही है उससे देखकर ऐसा लगता है कि बड़ी बात नहीं कि आने समय में सड़क पर पैदल चलते आदमी को कहा जाए कि भैया निकलने के पहले जो कहना सुनना हो कह के जाओ। सड़क पर पता नहीं कौन अंधाधुंध गति से चलता हुआ चालक ठोंक दे यह कहते हुए-देखकर नहीं चलते। अँधा है क्या बे।
रात हो गयी। अब खाना खा ले। समय पर खाना खाने और सोने का आदेश हुआ है। पालन जरूरी है न।
फ़ेसबुक की टिप्पणियां
बहरहाल हवा भरवाई। शारदा मन्दिर के पास। साईकिल वाले भाई जी ने बताया कि पहले इंद्रानगर में थे दूकान। अब यहां 700 रूपये के किराये पर हैं तीन साल से। बोले-साईकिल लोगों ने रखना कम कर दिया। आमदनी कम हो गयी है। दोनों पहियों की हवा के 4 रूपये। बकाया चार रुपया देने के लिए जेब से मसाला पाउच की थैली से रेजगारी निकाल के लिए। मसाला खाते नहीं लेकिन मसाला पाउच की थैली के उपयोग का सार्थक उपयोग में क्यों चूकें।
रांझी होते हुए खमरिया की तरफ आये। हम बाएं रास्ता देखते हुए आ रहे थे। थोड़ा ज्यादा ही बांये देख गए शायद। यह एहसास तब हुआ जब 'सडक़ सभा' कर रही गायों में से एक से साईकिल भिड़ंत हो गयी।वो तो कहिये भिड़ंत हल्की थी और गायें शरीफ तथा आसपास किसी चैनल की कोई ओबीवैन नहीं गुजर रही थी वरना अब तक आप घटना का विवरण किसी चैनल पर देख रहे होते।
आगे फिर एक बार बीच सड़क पर रखे अवरोध से भिड़ते हुए बचे। 'सावधान' लिखे हुये बैरियर इतनी सफाई और सावधानी से अँधेरे में रखे हुए थे कि उनसे बचने का मतलब यही माना जाएगा कि वाहन चालक फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।
हम सब खतरों से बचते-बचाते खमरिया के अतिथि गृह पहुंचे जहां हमारे भूतपूर्व वरिष्ठ महाप्रबन्धक विज्ञान शंकर, जी जो कि आयुध निर्माणी बोर्ड से मेंम्बर होकर 2004 में रिटायर हुए, से मुलाकात हुई। साहब ओ ऍफ़ सी, कानपुर में हमारे वरिष्ठ महाप्रबन्धक थे। उस समय की कई यादें और उसके बाद और पहले की अनगिनत यादें हम लोगों के साथ की हैं।
11 साल हो गए उनको रिटायर हुए। हमारे कालेज के पहले बैच के छात्र होने के नारे वे हमारे डबल सीनियर हुए। अब तो हमारे बुजुर्ग की हैसियत से भी आदरणीय हैं। हमारी किताब 'पुलिया पर दुनिया' उन्होंने ईबुक खरीद कर पढ़ी। वैसे भी बताते हैं कि मैडम और साहब हमारा लिखा पढ़ते रहते हैं। ऐसा सीनियर और बुजुर्ग जब तारीफ करे जिसका स्वयं भाषा पर जबरदस्त अधिकार हो तो खुशनुमा तो लगता है लेकिन यह भी लगता है कि जहां चूक होती होगी वहां मुस्कराते हुए देखते भी होंगे।
साहब की सबसे बड़ी खासियत उनकी सहजता है। कार्यकाल के दौरान 'साधारण लोगों' पर उनका असाधारण विश्वास रहा।उत्पादन के मामले में कई उपलब्धियां उनके नाम हैं। यह अलग बात है कि कई मौकों पर उनका श्रेय और फायदा चतुर लोगों ने झपटा।उनकी यादों को साझा करने की बात मैं जब भी उनसे कहता हूँ तो वे कहते हैं- मैं जिन बातों को भूल जाना चाहता हूँ आप उनको मुझसे फिर से याद करने के लिए कह रहे हैं।
हमने साहब से आग्रह किया कि आपकी टिकट बुक करा दें आप लोग सिनेमा देख आइये। लेकिन साहब ने कहा- आप साथ में चलिए तो चले। लेकिन हम दिन में दफ्तर रहे और शाम को साहब के साथ रहे साथी अपने घर ले गए सो सनीमा स्थगित रहा।
खमरिया से लौटे तो रांझी में अपने कॉलेज के एक और सीनियर डा. शुक्ला के दवाखाने होते हुए आये। शुक्ल जी मोतीलाल से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अपने शौक के चलते होम्योपैथिक डाक्टर हो गए। 23-24 साल से प्रैक्टिस कर रहे। जिस दुकान से साइकिल खरीदी वह बता रहा था -'बन्दा इंटेलिजेंट है। बिहार तक से मरीज आते हैं इसके पास।'
काबिलियत की बात तो खैर मरीज जाने लेकिन शुक्ल जी के बचपन के साथी रहे राजगोपाल जी ने बताया कि शुक्ल जी 'बचपन में' बड़े शरारती थे और अपने मोहल्ले की एक बंगाली लड़की को बचपन में चिढ़ाते थे। शुक्ल जी ने इस आरोप को गरिमापूर्वक स्वीकार करते हुए अपनी शरारतों के कुछ किस्से बयान किये। हमने सुझाव दिया कि 'बचपन में' के स्थान पर 'बचपन से' कहना अधिक समीचीन और सत्य के निकट होगा। शुक्लजी ने उदारता का परिचय देते हुए संसोधन स्वीकार कर लिया।
शुकुल जी की दूकान पर चाय पीते हुए गपियाये। किताब 'पुलिया पर दुनिया' हाथ में थी हमारे । हम उसको दिखाने को ले गए थे विज्ञान शंकर जी को।किताब देखकर डाक्टर साहब ने अपने से सम्बंधित पन्ना व्हाट्सऐप पर मंगा लिया इस वायदे के साथ कि वे किताब ई बुक खरीदेंगे।
शुक्ल जी के यहां चले तो नाई की दुकान दिखी तो ब्रेक मारे साइकिल को। बाल कटवाते हुए सोचा कि सेल्फी ले लें और पोस्ट करें। लेकिन यह सोचकर नहीं किये कि जिन लोगों ने दो दिन पहले हमारी फोटो लाइक करते हुए वाह वाही टिप्पणियॉ दी हैं वे लोग हमारी 'सेल्फी शक्ल ' देखकर कहीं अपनी लाइक वापस लेते हुए कमेंट मिटा न दें। दूसरा खतरा यह भी कि बाल कटी सेल्फी देखकर घरवाला कोई न कोई जरूर टोंकता बाल इत्ते छोटे क्यों करवाये, डाई क्यों नहीं कराया, कलम इतनी क्यों। सिर्फ एक सेल्फी के लालच से बचकर हम इतने सवालों के जबाब देने से बचे।
बाल कटाकर जब लौटे तो रांझी मोड़ पर बिना हेडलाइट वाले स्कूटर वाले न मेरे बगल से गुजरते हुए कहा-देखकर नहीं चलते। जिस तरह सड़क पर गाड़ियों की गुंडागर्दी बढ़ रही है उससे देखकर ऐसा लगता है कि बड़ी बात नहीं कि आने समय में सड़क पर पैदल चलते आदमी को कहा जाए कि भैया निकलने के पहले जो कहना सुनना हो कह के जाओ। सड़क पर पता नहीं कौन अंधाधुंध गति से चलता हुआ चालक ठोंक दे यह कहते हुए-देखकर नहीं चलते। अँधा है क्या बे।
रात हो गयी। अब खाना खा ले। समय पर खाना खाने और सोने का आदेश हुआ है। पालन जरूरी है न।
फ़ेसबुक की टिप्पणियां
- Mukesh Sharma रात ज्यादा हो गयी है ,मोबाइल की चार्जिंग भी लगभग ख़त्म है ।इजाजत हो तो कॉमेंट कल सुबह ।
- अनूप शुक्ल अब तो बांच चुके आप। smile इमोटिकॉन
- विद्या शंकर मौर्य वाह लाजवाब वर्णन......शायद सुबह चलाई नही तो गुस्से मे...............।।
शुभ रात्रि बडे भईया जी..।।
जय श्रीराम..।। - अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Indra Awasthi Dr. Shukla kaun se batch ke hain?
- Love Sharma · Damini Pasbola और 58 others के मित्रShukla jee 1983 C
- अनूप शुक्ल Dr A N Shukla नाम है।
- कुलदीप शर्मा अत्रि लाजवाब
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Jyoti Tripathi Ye cycle ki seat ka colour itna vibrant kyun hai, pahle to aisa nahi tha.
- अनूप शुक्ल गद्दी का सीट कवर नया लगवाया। smile इमोटिकॉन
- Vijay Wadnere नाते को नारे लिखना कहीं नेता बनने की दिशा में पहला कदम तो नहीं?
- अनूप शुक्ल इसलिए लिखा कि विजय आकर बताएंगे इसी बहाने। फिर ठीक कर लेंगे। smile इमोटिकॉन
- Anil Verma · Narinder Kochhar और 8 others के मित्रसाहब जी आपके व्हीकल परिसर में भी जानवर बहुत ज्यादा सभाए कर रही है ....ड्यूटी आते - जाते हमलोगो का उन जानवरो से सहिर्दय मिलन हो जाता है
- अनूप शुक्ल अच्छा है।संसार के सब प्राणियों को मिलजुलकर रहना चाहिए। smile इमोटिकॉन
- Anamika Vajpai आलस ठीक नहीं, गद्दी पर धूल, मतलब कि, बहुत दिनों से नहीं चलायी। ईश्वर करे आप पर आलस कभी सवार न हो, बल्कि आप ही सायकल की सवारी करें और अपने लाजवाब कथ्य से हमें लाभान्वित करते रहें।
- अनूप शुक्ल कई दिन बाहर थे न इसलिए साइकिल चली नहीं थी।इसीलिये धूल भी। smile इमोटिकॉन
- संतोष त्रिवेदी वाह। डबल वाह
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। डबल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Vijay Wadnere ठीक! चलिए अब जरा मानधन की भी बात हो जाए। आप प्रति पोस्ट के हिसाब से देना चाहेंगे या प्रति अशुद्धि के हिसाब से?
smile इमोटिकॉन - अनूप शुक्ल फिर तो यह भी तय होगा कि कितनी अशुद्धियाँ छूट गयीं wink इमोटिकॉन
- Mukesh Sharma सुंदर ।
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- सुमन जायसवाल chandi ki cycle sone ki seet ....................babu ji dheere chalna, bade dhoke hai is rah me!
- अनूप शुक्ल सही में ? हमें तो न मिले धोखे आज तलक़। smile इमोटिकॉन
- Satyapal Yadav इस सायकिल के भविष्य के बारे में भी सोचें
म्युजियम के लायक होगी यह सर - अनूप शुक्ल दुनिया ही अपने में एक म्यूजियम है जिसमें हम मय साइकिल के मौजूद हैं। smile इमोटिकॉन
- Rekha Srivastava जबलपुर प्रवास का यही फायदा है कि पढ़ने को रोज तैयार मिलता है ।
- अनूप शुक्ल मजबूरियां हैं यह भी। रहना पड़ रहा। smile इमोटिकॉन
- Shailendra Kumar Jha sachhi me aap mool roop se 'yayavar' hain..............bhasha me sanjidgi cha saralta............padh ke juwan 'wah' kar deta hai............
- अनूप शुक्ल ओह शैलेन्द्र भाई। क्या बात है। smile इमोटिकॉन
- Ajai Rai Lajbab aap k lekhan ko pranam.
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Chandra Prakash Pandey सर इंतज़ार में अच्छे अच्छों की हवा निकल जाती है फिर ये तो साइकल सहेली ठहरी।
- अनूप शुक्ल सही कहा smile इमोटिकॉन
- Shweta Sharma आदेश
- अनूप शुक्ल हां तब क्या smile इमोटिकॉन
- Mahesh Shrivastava saavan ka thandee hawa ke jhoke , chalte hai halke halke , aise me post padhke , ras haule haule chalke
- अनूप शुक्ल वाह क्या बात है। smile इमोटिकॉन
- Alok Ranjan v gd day
- अनूप शुक्ल शुभ हो। smile इमोटिकॉन
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी वाह, क्या बात है...!
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Gyan Dutt Pandey ओह, यह नहीं मालुम था कि साइकल गद्दी पर हाथ मार कर स्टर्ट होती है!
- अनूप शुक्ल बहुत बातें समय के साथ पता चलती हैं smile इमोटिकॉन
- Renu Bharadwaj Hair cut k bad selfy Jaruri hai!
- अनूप शुक्ल सही? पहले पता होता तो ले लिए होते और पोस्ट करते। smile इमोटिकॉन
- RB Prasad सहज ....सरल ...और दिल के करीब कथा.
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Ajai Rai आप की पेॆॆरना से हिन्दी लिखना शुरु कर रहा हूँ.
- अनूप शुक्ल बहुत खूब। smile इमोटिकॉन
- Mukesh Sharma एल्बर्ट आइंस्टीन कहते थे जिसे संगीत से प्यार नहीं ऐसा आदमी बहुत खतरनाक होता है ।खुशवंत सिंह कहते थे हर शरीफ आदमी अपनी बीबी से डरता है ।आप दोनों ही कसौटियों पर खरे उतरते है यानी भौतइ शरीफ आदमी है ।इससे ज्यादा शराफत और क्या होगी कि निहायत छोटे बाल कटवाने...और देखें
- अनूप शुक्ल केवल बाल तक बात रहती तब तो हिम्मत भी करते। वहां पूछा जाता डाई क्यों नहीं कराये। smile इमोटिकॉन
- Raj Narayan Shukla श्री विज्ञान शंकरजी -महानता की प्रतिमूर्ति । सरलता, सहृदयता, न्यायप्रियता, ईमानदारी, कर्मठता, सच्ची देशभक्ति , कुशल नेतृत्व ।
डा0 कलाम फिर याद आ गये !
Bhuvnesh Sharma देखकर चला कीजिए. smile इमोटिकॉन
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