छट्ठू सिंह |
ये यादें भी न बड़ी जालिम चीज होती हैं। कहीँ भी, कभी भी बेसाख्ता जेहन में घुसकर खलबली मचा सकती हैं।कोई वीसा, पासपोर्ट नई चहिये इनको। बिना 'में आई कम इन' कहे आपके स्मृति पटल पर पसर जाती हैं। तम्बू तान देती हैं। हो सकता है आप किसी का खिलखिलाता, होंठ बिराता चेहरा याद कर रहे हो और वो ऐन उसी वक्त किसी जाम में फंसा पसीने से लथपथ जाम खुलने का इन्तजार कर रहा हो। जब किसी की याद में आपकी नींद उड़ी हो उस समय वह पंचम सुर में खर्राटे ले रहा हो। यह भी हो सकता है कि यादों का छापा दोनों जगह एक साथ पड़े और दोनों किसी एक ही बात को याद करके खिल रहे हों। यह 'याद अनुनाद' की स्थिति बड़ी जालिम और खुशनुमा टाइप होती होगी। इसके बारे में फिर कभी।
आगे एक सज्जन पीठ की तरफ चलते हुए 'ब्रिस्क वॉक' कर रहे थे। उनकी तेजी देखकर लगा कि इनकी टहल तो शिक्षा व्यवस्था की तरह है। लगातार पिछड़ती जा रही है।
मोड़ पर ही मिले छट्ठू सिंह। उम्र अस्सी साल। 1935 की छपरा, बिहार की पैदाइश। सन् 42 का गदर देखा।आजादी आते देखी। परिवार में छठे नम्बर पर थे सो नाम मिला छट्ठू सिंह। खुद के पांच बच्चे थे। एक नहीं रहा।चार बचे।
बर्तन का काम करते हैं। ऑटो चलते हैं। कलकत्ता में बैलगाड़ी चलाई। टनों माल ढोते थे। जबलपुर आये सन् 1978 में। तब से यहीं हैं।
दांत सारे मुंह से समर्थन वापस लेकर बाहर हो गए हैं छट्ठू सिंह के। लेकिन बाकी स्वास्थ्य टनाटन है।चपल गति से टहलते हुए बोले-पहले का खानपान।बात ही कुछ और थी।बत्तीसी लगवाने के सवाल पर बोले-डाक्टर बोलता है केविटी बनाएगा। ये करेगा। वो करेगा। हम बोले-'दुत। ऐसे ही काम चल रहा चकाचक। नहीं लगवाये।'
बिहार चुनाव की बात पर बोले-हमारा वोट तो यहां है। जो जीतेगा सो जीतेगा। कभी-कभी जाते हैं घर।
महेश |
पिता व्हीकल फैक्ट्री से रिटायर है। 22 साल पहले। इत्ते से थे (जमीन से एक फुट ऊपर हाथ दिखाकर) तब माँ नहीं रही। बाप ने दूसरी शादी कर ली तब हम इत्ते से थे( हाथ थोडा और ऊपर करके बताया) तब दूसरी शादी कर ली।दूसरी माँ प्यार नहीं करती थी। बाप दारु के नशे में रहता। दादी-बाबा हमारे पैर पकड़कर मरे यह कहते हुए कि तुम हमारे भगवान हो।इतनी सेवा की हमने उनकी।
हमने पूछा -शादी नहीं की? बोले नहीं की। हमने पूछा -क्यों? बोले-बाप ने की ही नहीं। हमने पूछा-कभी किसी औरत का साथ रहा? बोले-नहीं रहा। हमने आजतक किसी लेडिस को छेड़ा नहीं। हमने कहा-बात छेड़ने की नहीं भाई। हम साथ की बात पूछ रहे।फिर हमने पूछा-साथ रहने का मन तो करता होगा किसी के? इस पर बोले महेश-हां क्यों नहीं करता। लेकिन बाप ने शादी ही नहीं की तो क्या करें?
हमें लगा क्या मजेदार है अपना देश। लड़का चाहे और सब मर्जी से करे लेकिन शादी बाप की मर्जी से ही करता है। अपने समाज में शादी एक ऐसा खाता है जिसका पासवर्ड माँ-बाप को ही पता होता है। उन्हीं से खुलता है।
कोई नशा नहीं करते कहते हुए महेश ने जेब की पुड़िया से कलकत्ता बीड़ी निकाल कर सुलगा ली।
अपने परिवार के बारे में बताते हुए बोले-बड़ा भाई राजेश ट्रक चलाता था। दो साल से लापता है। उसके चार बच्चे हैं।एक लड़की तीन लड़के। सब हमारे घर रहते हैं। बाप खर्च देता है। पढ़ते हैं।भाभी बर्गी में रहती है। लोगों के घरों में बर्तन मांजती है।
भाई के लापता होने की खबर बाप ने कहीँ छपाई नहीं।छपाता ,टेलीविजन में दिखाता तो शायद मिल जाता।
भाई क्यों लापता हो गया? इस पर बोले महेश- क्या पता? लेकिन वो कहता था कि ये बच्चे हमारे नहीं। इनकी शक्ल हमसे नहीं मिलती। जैसे मेरी आँख की पुतली देख रहे न।हमारे भाई और हमारी आँख की पुतली एक जैसी है।भाई के बच्चों की शक्ल उससे नहीं मिलती।
भाभी का किसी से चक्कर था क्या? यह पूछने पर बोले महेश- क्या पता? लेकिन दोनों में लड़ाई होती थी।भाई घर आते ही भाभी से लड़ता था कि ये बच्चे उसके नहीं।भाभी कहती थी- तुम्हारे वहम का क्या इलाज किसी के पास।
मुझे यही लगा कि बच्चे किसी के हों लेकिन वो भी इसी तरह की कहानी लेकर बड़े हो रहे होंगे-बाप छोड़ गया।मां चली गयी। उनको उन अपराधों की सजा मिल रही जो उन्होंने किये ही नहीं।
कमीज देखकर हमने पूछा-कितने दिन हुए इसको धोया नहीं? बोले-बाप की है पैन्ट शर्ट। मन्दिर से कुरता पायजामा मिला था। वो बड़ा है। घर में रखा है। ये छाता भी वहीं से मिला।
चाय के पैसे देने लगे तो 100 का नोट का फुटकर नहीं बोले राजू चाय वाले। इस पर महेश ने दस का नोट निकाल कर मेरे भी पैसे देने की पेशकश की।हमने मना करते हुए उनकी चाय के पैसे भी दिए और साथ में बैठकर एक चाय और पी।
हमने बताया कि हम भी व्हीकल में नौकरी करते हैं।इस पर महेश बोले-फिर तो आप हमारे बाप को जानते होंगे। मुन्ना सिंह ठाकुर। हमने कहा नहीं जानते। फिर पूछा महेश ने-क्या रात ड्यूटी थी तुम्हारी। हमने कहा -नहीँ दिन की है। जायेंगे अभी।
हमने शादी की बात दुबारा चलाते हुए सलाह दी- खुद कोई लड़की देखकर क्यों शादी नहीं कर लेते। साथ में कोई मांगती हो। विधवा हो। पड़ोस में हो जिससे लगता है ठीक रहेगा उससे कर लो शादी। इस पर महेश बोले-'डिफाल्टर लड़की नहीं चहिये।' डिफाल्टर मांगने वाली के लिए कहा या विधवा के लिए पता नहीं लेकिन यह अपने समाज में स्त्री के बारे में आम पुरुष की सहज सोच को बताता है।
चलते हुए महेश मेरे बगल में खड़े होकर बोले-कोई लड़की निगाह में हो तो बताना। घर आना। बात करेंगे। हमने पूछा-कैसी लड़की चाहिए? बोले-30/35 की उम्र की ।मैंने कहा-तुम पचास के और तुमको लड़की चाहिए 30/35 की।उसका भी तो मन अपनी उमर का लड़का चाहता होगा।
लौटकर आते हुए स्व. उमाकांत मालवीय की कविता (http://www.anubhuti-hindi.org/…/u/umakant_malviya/ekchai.htm )पंक्ति न जाने कैसे याद आ गयी:
एक चाय की चुस्कीआपका दिन शुभ हो। आप स्वस्थ रहें। मुस्कराते रहें।चेहरे पर मुस्कान से बेहतर कोई सौंदर्य प्रसाधन नहीं बना आजतक। जरा सा धारण करते ही चेहरा दिपदिप करने लगता है। मुस्कराइए क्या पता आपकी मुस्कान युक्त शक्ल किसी की जेहन में हलचल मचा रही हो।अगर आपको पता है तो आप भी उसको याद करिये। क्या पता 'याद अनुनाद ' हो जाए।
एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा।
एक अदद गंध
एक टेक गीत की
बतरस भीगी संध्या
बातचीत की।
इन्हीं के भरोसे क्या-क्या नहीं सहा
छू ली है एक नहीं सभी इंतहा।
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