कल शाम Sharma Shankar Dwivedi
जी से मिलना हुआ। हम लोग आर्डनेंस फैक्ट्री कानपुर में काफी दिन साथ रहे।
कानपुर से रिटायर होने के पहले मेडक और उसके पहले व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर
में रहे।
मूलत: कन्नौज के रहने वाले द्विवेदी अपने देश के ऐसे तमाम लोगों की तरह हैं जिनमें प्रतिभा खूब होती है लेकिन जिनको जानकारी के अभाव में मंजिल देर से मिलती है। पढ़ने लिखने में अच्छे होने के बावजूद कन्नौज में कहां किसको पता कि आगे क्या करना होता है। शुरुआत वी ऍफ़ जे से अराजपत्रित अधिकारी के रूप में करके फिर जबलपुर में रहकर ही ए एम आई ई किया। यू पी एस सी से राजपत्रित अधिकारी हुए और अंतत: कानपुर रिटायर हुए संयुक्त महाप्रबन्धक के पद से।
मूलत: कन्नौज के रहने वाले द्विवेदी अपने देश के ऐसे तमाम लोगों की तरह हैं जिनमें प्रतिभा खूब होती है लेकिन जिनको जानकारी के अभाव में मंजिल देर से मिलती है। पढ़ने लिखने में अच्छे होने के बावजूद कन्नौज में कहां किसको पता कि आगे क्या करना होता है। शुरुआत वी ऍफ़ जे से अराजपत्रित अधिकारी के रूप में करके फिर जबलपुर में रहकर ही ए एम आई ई किया। यू पी एस सी से राजपत्रित अधिकारी हुए और अंतत: कानपुर रिटायर हुए संयुक्त महाप्रबन्धक के पद से।
जानकारी के अभाव में जो उपलब्धियां खुद को देर से मिलीं उनको अपने बच्चों
के माध्यम से पूरा करने का काम किया ।मेहनत और लगन से पढ़ाये उनके दोनों
बेटे अमेरिका में व्यवस्थित हैं।
अंग्रेजी। कल स्काइप पर अमेरिका में अपनी बहुरिया और उसके बच्चों से बतियाती हुई भाभी जी के चेहरे की चमक देखकर लगा कि ख़ुशी अगर कुछ होती है तो उसका एक 'स्नैप शॉट' यह रहा।
बहुत दिन बाद मुलाक़ात और बातचीत हुई द्विवेदी जी से। अपने काम काज में अव्वल रहे हमेशा द्विवेदी जी। भाषा पर जबरदस्त अधिकार। बोलते बहुत अच्छा हैं। उनको सुनते हुए लगता है कि काश ऐसी दमदार आवाज हमारी भी होती। साल के कुछ महीने बेटों के पास गुजारते हैं अमेरिका में। वहां के संस्मरण लिखने चाहिए द्विवेदी जी को।
हमारा लिखा पढ़ते रहते हैं दोनों लोग। भाभी जी ने अभी अलग खाता नहीं बनाया फेसबुक पर। हमारी एक तुकबन्दी को द्विवेदी ने फैक्ट्री की पत्रिका में प्रकाशित किया था। देखिये आप भी:
आओ बैठें ,कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें,सुन लें ,बात-बात में।
गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन,साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
बस तनातनी है, बड़ा तनाव है,
जितना भर लो, उतना अभाव है।
हम कब मुस्काये , याद नहीं ,
कब लगा ठहाका ,याद नहीं ।
समय बचाकर , क्या कर लेंगे,
बात करें , कुछ मन खोलेंगे ।
तुम बोलोगे, कुछ हम बोलेंगे,
देखा – देखी, फिर सब बोलेंगे ।
जब सब बोलेंगे ,तो चहकेंगे भी,
जब सब चहकेंगे,तो महकेंगे भी।
बात अजब सी, कुछ लगती है,
लगता होगा , क्या खब्ती है ।
बातों से खुशी, कहां मिलती है,
दुनिया तो , पैसे से चलती है ।
चलती होगी,जैसे तुम कहते हो,
पर सोचो तो,तुम कैसे रहते हो।
मन जैसा हो, तुम वैसा करना,
पर कुछ पल मेरी बातें गुनना।
इधर से भागे, उधर से आये ,
बस दौड़ा-भागी में मन भरमाये।
इस दौड़-धूप में, थोड़ा सुस्ता लें,
मौका अच्छा है ,आओ गपिया लें।
आओ बैठें , कुछ देर साथ में,
कुछ कह ले,सुन लें बात-बात में।
तमाम यादें हैं। उनको साझा करने के लिए और नई जोड़ते रहने के लिए हमारे ये बुजुर्गवार स्वस्थ,सानन्द सलामत रहें। जोड़े से ऐसे ही सटे हुए फोटो खिंचवाते रहें सालो साल।
अंग्रेजी। कल स्काइप पर अमेरिका में अपनी बहुरिया और उसके बच्चों से बतियाती हुई भाभी जी के चेहरे की चमक देखकर लगा कि ख़ुशी अगर कुछ होती है तो उसका एक 'स्नैप शॉट' यह रहा।
बहुत दिन बाद मुलाक़ात और बातचीत हुई द्विवेदी जी से। अपने काम काज में अव्वल रहे हमेशा द्विवेदी जी। भाषा पर जबरदस्त अधिकार। बोलते बहुत अच्छा हैं। उनको सुनते हुए लगता है कि काश ऐसी दमदार आवाज हमारी भी होती। साल के कुछ महीने बेटों के पास गुजारते हैं अमेरिका में। वहां के संस्मरण लिखने चाहिए द्विवेदी जी को।
हमारा लिखा पढ़ते रहते हैं दोनों लोग। भाभी जी ने अभी अलग खाता नहीं बनाया फेसबुक पर। हमारी एक तुकबन्दी को द्विवेदी ने फैक्ट्री की पत्रिका में प्रकाशित किया था। देखिये आप भी:
आओ बैठें ,कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें,सुन लें ,बात-बात में।
गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन,साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
बस तनातनी है, बड़ा तनाव है,
जितना भर लो, उतना अभाव है।
हम कब मुस्काये , याद नहीं ,
कब लगा ठहाका ,याद नहीं ।
समय बचाकर , क्या कर लेंगे,
बात करें , कुछ मन खोलेंगे ।
तुम बोलोगे, कुछ हम बोलेंगे,
देखा – देखी, फिर सब बोलेंगे ।
जब सब बोलेंगे ,तो चहकेंगे भी,
जब सब चहकेंगे,तो महकेंगे भी।
बात अजब सी, कुछ लगती है,
लगता होगा , क्या खब्ती है ।
बातों से खुशी, कहां मिलती है,
दुनिया तो , पैसे से चलती है ।
चलती होगी,जैसे तुम कहते हो,
पर सोचो तो,तुम कैसे रहते हो।
मन जैसा हो, तुम वैसा करना,
पर कुछ पल मेरी बातें गुनना।
इधर से भागे, उधर से आये ,
बस दौड़ा-भागी में मन भरमाये।
इस दौड़-धूप में, थोड़ा सुस्ता लें,
मौका अच्छा है ,आओ गपिया लें।
आओ बैठें , कुछ देर साथ में,
कुछ कह ले,सुन लें बात-बात में।
तमाम यादें हैं। उनको साझा करने के लिए और नई जोड़ते रहने के लिए हमारे ये बुजुर्गवार स्वस्थ,सानन्द सलामत रहें। जोड़े से ऐसे ही सटे हुए फोटो खिंचवाते रहें सालो साल।
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