Monday, May 25, 2009

इलाहाबाद के बाकी किस्से

http://web.archive.org/web/20140419214303/http://hindini.com/fursatiya/archives/639

24 responses to “इलाहाबाद के बाकी किस्से”

  1. समीर लाल
    ब्लागिंग में देर है अंधेर नहीं है।-नोट कर लिया.
    रिपोर्टिंग चौचक है भाई. बहुत अच्छे. तीन बजे रात-कानपुर में?? घर गये कि सबेरा होने के इन्तजार में स्टेशन पर बैठे रहे?
  2. PN Subramanian
    इलाहाबादी किस्सा रास आया. कुछ कुछ ज्ञान वर्धन भी हुआ. आभार
  3. Kajal Kumar
    सिद्धार्थ जी की पोस्ट पढ़ कर लगा, दूरदर्शन का समाचार चैनल है.
    आपकी पोस्ट पढ़ कर लगा, वही खबर आजतक पर देख रहे हैं.
    आभार.
  4. संजय बेंगाणी
    मजेदार.
    वैसे मठाधीश हम है, अपने आप को माने तो कोई प्रोबलम है क्या? :)
  5. ताऊ रामपुरिया
    बहुत उम्दा रिपोर्टिंग..और चाय की दुकान पर ब्लाग विमर्ष बिना फ़ुरसतिया चर्चा अधूरी मानी जायेगी..कारण कि हमको याद है जबलपुर मे भी आपने समीर जी के फ़ाईव स्टार इंतजाम के होते हुये भी चाय की दुकान पर पहुंच कर चाय पी थी और वहां से भी रिपोर्टिंग की थी.:)
    इंतजार करते हैं.
    रामराम.
  6. dr anurag
    “गूगल सर्च में टाइप करो blog, एक खिड़की खुलेगी, एक जगह लिखा मिलेगा create new blog, उसे चटकाओ और जो-जो कहे करते जाओ। ब्लॉग बन गया।”
    ठीक कहते है .हमारा भी ऐसे ही बना था .अफ़सोस हमारे किसी पुराने मित्र ने अपने ब्लॉग पे हमारे आने की सूचना नहीं दी थी……
  7. anil pusadkar
    ऐसा ही कुछ-कुछ यंहा भी करने का सोच रहे हैं।
  8. दिनेशराय द्विवेदी
    ज्ञान जी करुणानिधि भी हैं, नई बात पता लगी।
  9. Abhishek Ojha
    ‘किसी मुद्दे पर भिड़ने के लिये एकमत न हो सके’ अरे ! आप के होते हुए? इतनी सहमती तो आप करा ही सकते थे :)
  10. हिमांशु
    रिपोर्ट बहुत ही खूबसूरत है । रोचक शैली में लिखा है आपने । आभार ।
  11. amit
    हम बड़े खुश कि ज्ञानजी का भाषण तुरंतै खत्म हो गया लेकिन हमें तुरंत ज्ञानजी की बात का मतलब भी समझ में आ गया। हम लोग भाषण दिये और ज्ञानजी काम की बातें करेंगे। बताओ भला।
    अब ऊ भाषण बाजी जो पहले हुई उसी के कारण तो आधी जनता खिसक ली थी!! ;) :D
    अरविन्दजी के अंग्रेजी में प्रस्तुतिकरण पर सवाल उठाने वाले श्रोता पधार चुके थे अन्यथा वे शायद ज्ञानजी का प्रस्तुतिकरण देखकर और संतुष्ट होते।
    यदि मैं गलत नहीं हूँ तो पधारना यानि कि तशरीफ़ लाना। “चले गए” के लिए हिन्दी शब्द दिमाग में नहीं आ रहा है, उर्दू में “रुख़्सत हो चुके थे” कहेंगे! :)
  12. Shastri JC Philip
    आप तो भईया विवरण इस तरह लिखते हैं कि पाठक की आखों के सामने सब कुछ घटता सा लगता है. इसका कुछ गुर वुर सिखाओ तो हम कुछ और आगे बढें!!
    सस्नेह — शास्त्री
    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info
  13. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    ये तो बताया नहीं कि भोजन में क्या बना था। अगर बैंगन और भिण्डी की सब्जियां थीं तो मिस करने का कोई गम नहीं हमें। अन्यथा तो है।
  14. लावण्या
    ” हिन्दी ब्लोगीँग जगत
    ” अपनी सारी नाज़ुक स्थिति के रहते हुए भी
    अपना एक सुनियोजित स्थान बना पाया है
    इसीकी खुशी है हमेँ तो “अंधेर ” नहीँ
    उजाला -सा लगता है यहाँ आकर !
    रीपोर्ट अच्छी लगी अनूप भाई -
    - लावण्या
  15. गौतम राजरिशी
    देव मेल करके विश्वास दिलाने का शुक्रिया…..वर्ना हम तो इसे कल्पित मान ही चले थे..
    अब चाय की दूकान वाले ब्लौग-विमर्श की प्रतिक्षा है
  16. Nishant
    सर जी, आपका ब्लौग कल रात से खोलने की खूब कोशिश कर-करके थक गया लेकिन आज शाम को ही खुला! क्या हो गया था! बाकि सारी साइटें खुल रहीं थीं! लगता है ट्रेफिक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था!:)
  17. कविता वाचक्नवी
    दमदार किस्सागोई। यादें ताज़ा हुईं।
  18. anitakumar
    लेकिन हमें तुरंत ज्ञानजी की बात का मतलब भी समझ में आ गया। हम लोग भाषण दिये और ज्ञानजी काम की बातें करेंगे। बताओ भला।
    हा हा हा
    टिपिकल फ़ुरसतिया इश्टाइल, मजा आया।
  19. Pramedra Pratap Singh
    एक बढि़या कार्यक्रम का आयोजन था, कार्यक्रम में हास्‍य, विनोद और बिछुड़ने का गम भी। हम कह सकते है कि एक सम्‍पूर्ण फिल्‍मी फेमिली ड्राम।
    मठाधीशी पर राजनीति हो रही है। कहीं न कहीं हर ब्‍लागर के अंदर मठाधीश विद्यामान है, जो गाहे-बगाहे खूँखार रूप ले लेता है :)
    दो साल पहले आपसे ता मिल ही चुका था, ज्ञान जी से भी मिलना हो चुका था, कुछ दिन पूर्व सिद्धार्थ जी से भी मुलकात हुई थी। श्रीमती पांडेय जी, कविता थी, अरविन्‍द जी और वीनस जी आदि से मिलना सुखद और मिलने के बाद जल्‍द न मिल पाने का गम भी था।
    इलाहाबाद को आप चाहे मायका कहे या अपनी ससुराल, साल भर में एक चक्‍कर मार ही लिया करे, अगर ब्‍लागर मीट, चाय या पान की दुकान पर मिलना हो तो भी चलेगा। :)
  20. Dr.Arvind Mishra
    “खाने के दौरान और बाद में भी हमने भरसक प्रयास किया कि कविताजी और अरविन्दजी किसी मुद्दे पर भिड़ें/बहसियायें तो कुछ और बात बनें लेकिन न जाने क्यों दोनों समझदार बने रहे। समझदारी से अधिक मुझे लगा कि दिन भर के थके होने के कारण कविताजी और अरविन्दजी किसी मुद्दे पर भिड़ने के लिये एकमत न हो सके।”
    अरे यह कैसे छूट गया था -हाँ आभारी हूँ की आपने अपनी तरफ से कोशिश तो बहुत की मगर सही कह रहे हैं दोनों और से मनः स्थति लड़ने भिड़ने की नहीं बन पाई -ये लराई झगरा तो बस आभासी जगत के लिए बाहर तो हम अपने असली रूप में ही रहते हैं न -सौम्य ,शिष्ट और सभ्य ! मगर हैं आप गजब ! जहां कौनो झगडा न हो वहां लगा देगें ! और झरोखे से मुजरा करेंगें -अब हम सावधान हैं !
    और खनवा में क्या क्या खाए ? देखिये ज्ञान जी पूंछ ही बैठे न ? पता नहीं कौनों थाली का फोटुआ नहीं खीन्चेस का ? नहीं त टीप दिहा जात इह्नीं -गयान जी के साथ साथ ऊ आपन डग्दराऊ साहब ,अरे उहै डॉ अमर कुमारौ का मुन्हा में पानी आई जात !
    कितनी दुल्हन सी सजी सजी थाली आयी थी और आप कितनी ललचायी नजर से देख रहे थे -इन्हा तक की थाली क चक्कर में कविता जी के भी अट्टेंशन देने को कुछ क्षण भूलि गए थे ! अब जब ज्ञान जी ई सुनिहैं की सी रॉक रेस्टोरेंट ( इहै नमवा रहा न रेस्तुरेन्तवा का ? ) में छप्पन वयंजन वाली थाली आयी थी -दक्षिण भारतीय स्पेशल त खूब पछितैहें !
    बहुत अच्छा लगा आप सभी से मिलकर और कविता जी की एक जिज्ञासा का उत्तर यहाँ दे दूं -वहां आपके साथ -संकोच के कारण नहीं दे पाया -वे अपनी फोटो से ज्यादा सुन्दर हैं ! कौनो श्रोता भी कुछ ऐसे सवाल उठाया था न की कौनों ब्लागर अपने चिट्ठे में चेपें फोटो से तनिकौ नहीं मिल रहे हैं ! इस बात से कविता जी थोडा व्यग्र हो गयीं थीं -तो अब जाकर जवाब !
    कहै क त और भी बहुत स बात रही मगर जाई दें ! फिर कभौं !
  21. Kavita Vachaknavee
    Meri Jijnasa ka uttar? mujhe jijnasa kisi ki shakla sooart ko lekar nahin apitu is baat par aashcharya tha ki jab kisi ne kaha ki amuk amuk bloggers apni profile par lagaye chitra se bilkul nahin milte / ya milte hain.ismein roop/kuroop/suroop ka koi mudda hi nahin tha.
  22. jhjhnn,
    “खाने के दौरान और बाद में भी हमने भरसक प्रयास किया कि कविताजी और अरविन्दजी किसी मुद्दे पर भिड़ें/बहसियायें तो कुछ और बात बनें लेकिन न जाने क्यों दोनों समझदार बने रहे। समझदारी से अधिक मुझे लगा कि दिन भर के थके होने के कारण कविताजी और अरविन्दजी किसी मुद्दे पर भिड़ने के लिये एकमत न हो सके।”
  23. shrfdgjl
    मजे की बात यह रही कि जब कार्यक्रम अपने उत्स पर था तो निराला सभागार ठसाठस भरा हुआ था, लेकिन जब अन्त में ब्लॉगिंग के गुरुमन्त्र जानने की बारी आयी तो हाल में वही पच्चीस-तीस धैर्यवान श्रोता बैठे हुए थे जितने की इच्छा गुरुदेव ने जाहिर की थी।
  24. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] इलाहाबाद के बाकी किस्से [...]

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