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अब तो जो पानी पिलवाय दे ,है वही नया अवतार
By फ़ुरसतिया on June 28, 2009
1.बदरा, बदरी के संग में, हुआ जाने कहां फ़रार,
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!
सबहन*= सब जगह
2.फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय!
3.बादल धरती के ऊपर दिखा, गये सूरज जी भन्नाय,
’आपरेशन मजनू’ को याद कर, बादल फ़ूटा जान बचाय!
4.लू-लपटों के संग रह, सड़कों के भी बिगड़े हाल,
सुबह दिखे जो शान्त सी, झुलसाती तलवों की खाल!
5.पानी, पना पिलाय के , कोई देय पपीता खिलवाय,
लस्सी, पेप्सी के संग में,गर्मी भी खिल-खिल जाये।
6.एसी, फ़ेसी सब फ़ेल भये, कूलर भी मांगे खैर,
बिजली बिन कुछ न चले, जिसका गर्मी से बैर!
7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
8.आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
9.अर्थव्यवस्था सी नदिया भई, दुबली-पतली बे-नीर,
अब बादल बेलआउट मिले, तो मिटे सभी की पीर!
10. लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!
11.नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
चित्र फ़्लिकर से साभार
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार!
सबहन*= सब जगह
2.फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय!
3.बादल धरती के ऊपर दिखा, गये सूरज जी भन्नाय,
’आपरेशन मजनू’ को याद कर, बादल फ़ूटा जान बचाय!
4.लू-लपटों के संग रह, सड़कों के भी बिगड़े हाल,
सुबह दिखे जो शान्त सी, झुलसाती तलवों की खाल!
5.पानी, पना पिलाय के , कोई देय पपीता खिलवाय,
लस्सी, पेप्सी के संग में,गर्मी भी खिल-खिल जाये।
6.एसी, फ़ेसी सब फ़ेल भये, कूलर भी मांगे खैर,
बिजली बिन कुछ न चले, जिसका गर्मी से बैर!
7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
8.आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
9.अर्थव्यवस्था सी नदिया भई, दुबली-पतली बे-नीर,
अब बादल बेलआउट मिले, तो मिटे सभी की पीर!
10. लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!
11.नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
चित्र फ़्लिकर से साभार
अनिल भाई: हम तो कह ही रहे हैं भैया- बरखा रानी जरा जम के बरसो। लेकिन अभी तक बारिश के आसार नहीं दिख रहे हैं। लांग ड्राइव के लिये शुभकामनायें। लौट के इसके किस्से बतायें। बेगम और सौत के किस्से भी सुनायें।
anand aagaya………..
अलबेलाजी: हम भी आपके आनंद को देखकर आनंदित हो रहे हैं
फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय! सुंदर
–मानोशी
मानोशी! शुक्रिया !!(अ)-दोहे इसलिये कहे गये काहे से कि ये १३-११-१३-११ वाली मात्राओं में नहीं हैं। ये दोहे फ़ुरसतिया संग दोष के कारण बिगड़ गये। कुसंग का ज्वर भयानक होता है न!
द्विवेदीजी: धूप बदलियों का सत्यानाश कर दे रही है। इनको दिल्ली भेज दीजिये। आज वहां सम्मेलन हो रहा है। आस बनायें रखें।
मीनाक्षीजी: बदरा-बदरी व्यस्त हैं और मस्त भी। आपके लिये दुआ करते हैं कि आप भी जल्द ही परेशानियों से उबर कर मस्त हो जायें। आपके बच्चे का जन्मदिन मुबारक!
व्याकुल गरमी सों दिखें ई फ़ुरसतिया कविराय
कवित्त ऎसी रच रहे कि मौज़ लिया नहिं जाय
डा.साहब: व्याकुल हम न बहुत हैं, न हैं ज्यादा हलकान
गर्मी कुछ ज्यादा बढ़ी , सो चढ़ि आये ब्लाग-मचान।
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
—————————-
शानदार अन्दाज —- बहुत सुन्दर
वर्माजी: शुक्रिया, धन्यवाद!
शायद पहली बार यहाँ आया। विविधता देख कर मस्त हो गया हूँ।
“7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!”
मजा आ गया। इसमें चश्मा पहनने वालों को भी लपेटना था। पसीना जब चश्में के सहारे आँखों घुस जाता है तो बहुत परेशान करता है।
गिरिजेशजी लखनऊ की खबर पता चली। मानसून बाबा आयेंगे तो परिवार समेत आयेंगे। बादल, बदली, बूंदा, बांदी! आप पहली बार आये मस्त हो गये । शायद यह भी मानसून बाबा का प्रसाद है। आते रहें। चश्मा पहनने वालों के लिये आपकी फ़िक्र देखकर अच्छा लगा- हमहुं चश्मुद्दीन हैं न!
बाथरूम में गिर गए, लगी चोट दिल माहिं
विवेक: मुस्की तक तो ठीक है, मुलु और न सोहे तोय,
फ़िसलन बाथरूम की बुरी,हड्डी का चूरा होय!
सुब्रमनियमजी: शुक्रिया। बारिश अब तक अपने जलवे दिखाने लगी होगी।
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
एक से बढकर एक..और बहुत ही सामयिक.
रामराम.
ताऊजी: शुक्रिया! आपकी जय हो!
कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल,
बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल,
पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय ||
अन्योनास्तिजी: शुक्रिया!! आपकी कविता पूरी बांची। मजा आ गया।
चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया ,
काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया
डा.अरविन्द मिश्रा: ये तल्खी आखिरी फ़ड़फ़ड़ाहट है शायद गर्मी की।
सुंदर रचनायें – #७ और ११ बहुत पसंद आई!
नितिन भाई: पसंदगी के लिये शुक्रिया। बरखा रानी, बादल महाराज आज कई जगह झमाझम तो कहीं हौले-हौले बरसे हैं।
महेन्द्र मिश्रजी: शुक्रिया। बदरा-बदरी के जलवे के क्या कहने। बनारसी कवि चकाचक बनारसी
कहते हैं:
बदरा-बदरी के पिछवऊलेस, सावन आयल का?
खटिया चौथी टांग उठईलेस, सावन आयल का?
यह टिप्पणी रेल प्रशासन को लीक न की जाये!
ज्ञानजी: हम कुच्छौ लीक न करेंगे लेकिन आपै सोचिये। सुबह आप अपने ब्लाग पर एथिक्स की बात करते हैं। लेकिन दोपहर को जब टिपियाते हैं तो आपका एथिक्स गो-वेन्ट-गान हो जा रहा है। धनबाद में कोयले का लदान बन्द होने से रेलवे की आमदनी कम होगी। देश का ऊर्जा-उत्पादन चौपट होगा। ई कैसी एथिक्स पालिसी है जी आपकी?
लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!
सागर भाई: शुक्रिया। हंसते रहना चाहिये।
और दिल्ली बारिश भेजने कि आपकी इच्छा पुरी हुई.. :)आज अच्छी बारिश हुई..
रंजनजी: शुक्रिया। बारिश की बधाई। आनन्द लीजिये।
समीरलालजी: हम सब जगह साइकिल से घूम लिये कौनौ सिखाने वाले न मिला सिवा १३-११-१३-११ जो कि हम कक्षा आठ में ही सीख लिये थे। हंसने का काम ऐसे बेमन से नहीं किया जाता है जी। ऐसा हंसना भी क्या जिससे लगे कि रुलाई छूट रही है।
क्या मस्त -मस्त लाइनें हैं , इन्द्र देव जल्द कृपा करो .
मनोज मिश्र: डा.साहब देखिये आपकी पुकार पर इन्द्र देव भागते चले आये।
मनविन्दरजी: शुक्रिया।
अभिषेक ओझा मजे लिये रहो। बारिश भी इसी लिये आई है।
घुघूती बासूती
घुघूती बासूतीजी: मजा आप लीजिये लेकिन थोड़ी वर्षा इधर भी भेज दीजिये ताकि हम भी मौज ले सकें।
मजेदार तुक भिंड़ाया है आपने।
सिद्धार्थ त्रिपाठी: आप भी कुछ भिड़ा-विड़ा लो। कहां ट्रेजरी में फ़ंसे हो!
बालीजी: आपकी टिप्पणी का शुक्रिया। कविता फ़ूटेगी पर हमें तो नहीं लेकिन कुछ प्रतिष्ठित कविजन को आपत्ति हो सकती है। वे शायद कहना चाहें कि कविता फ़ूटती नहीं बल्कि प्रस्फ़ुटित होती है।
गर्मी पर दोहे गढे दिए ब्लॉग पर डाल
ब्लॉगरगण के टीप से बढ़ता जाए माल
मिश्रजी: (अ) दोहे तो अब कायदे से बिगड़े हैं आपका संग-सुख पायकर निहाल हो रहे हैं। खुशी से बेहाल हो रहे हैं। गुदड़ी के लाल हो रहे हैं।
’चकाचक’ की कविता सुनी है ना ! अब उसी का मौसम आने वाला है –
“बदरी के बदरा पिछुअउलस सावन आयल का
खटिया चौथी टाँग उठउलस सावन आयल का !”
हिमांशु: शुक्रिया। बादल के साथ आप भी कुछ झूमिये न! चकाचक बनारसी की कविता का जिक्र मैंने ऊपर महेन्द्र मिश्र जी की टिप्पणी के जबाब में किया है। आप ई वाली कविता पूरी पढ़वाइये ने!
जोड तोड दोहे लिखे, फ़ुरसतिया का काम!!
रचनाजी:मौज मजा चलता रहे, कित्ती अच्छी बात,
बिना जोड़ और तोड़ के, सजे न मौज-बारात!
ह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रजनीशजी: अब हम कैसे रोक सकते हैं आपको तारीफ़ करने से। आप करिये। पानी पी-पीकर करिये। हम शुक्रिया कह रहे हैं।
इन दो पंक्तियों पर खूब तालियां देव:-
“बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस”
दोहों में गर्मी की महिमा और वर्षा का इंतजार, बड़ा रोचक रहा। मुझे तो यह दोहा बहुत ही पसंद आया, गाँव, अमराई और नींम के ओटले / चौपालों की याद दिलाता हुआ :-
आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सर सुकुल जी की खेती सूख रही है
आ …बदरिया …आ भी जा
वाह उस्ताद जी बहुत बढिया लिक्खे हो आप
– लावण्या
आंखों से आंसुओं की नदिया बह गईं
देखा आपने कल मानसून
सुन कर सून ही बारिश की कहानी कह गई
रह गई तमन्ना भीगने की जो
वो भी बस में चढ़ने से पहले
तरबतर हो गई, जल जल हो गई
हर पल हो गई
छल छल निच्छल हो गई।
सालों बाद कोई दोहा मेरी समझ में आया है । इसलिए मेरी समझ बढाने के लिए प्लीज़ झउआ भर बधाई सहर्ष स्वीकार करें ।
उसका भी अपना मजा है