Saturday, May 23, 2009

जींस-टाप, फ़ादर्स-डे और टिप्पणी-चिंतन

http://web.archive.org/web/20140419214111/http://hindini.com/fursatiya/archives/653

36 responses to “जींस-टाप, फ़ादर्स-डे और टिप्पणी-चिंतन”

  1. अविनाश वाचस्‍पति
    उड़ेगा तो जरूर
    चाहे बेमन से उड़े
    मन की उड़ान
    भला रोक सका है कौन
  2. anil pusadkar
    ड्रेस कोढ सारी कोड़ तो बापू ने भी लगाने की कोशिश की थी,क्या हुआ खादी का?खादी पहनने वालों ने तो देश को ही खा डाला।संघी भी दशहरे या शाखा जाते समय खाकी मे नज़र आ जाते हैं,अनुशासन की घुट्टी बचपन से पीने वाले कैसे तमाशा बने हुये हैं।और भी है इस कोढ सारी कोड के शिकार्।जो सालों स्कूल मे इसका अनुसरण कर के नही समझता वो कालेज के कुछ दिनों मे क्या समझ पायेगा भला।बहुत सही लिखा सर जी।
  3. संजय बेंगाणी
    पोस्ट और फोटो दोनो पसन्द आई :)
  4. प्रवीण त्रिवेदी ...प्राइमरी का मास्टर
    जींस , पित्र दिवस और काल्पनिक कोलकाता चर्चा !!
    समग्र चर्चा पढ़ा और अब समझने जा रहा हूँ!!
  5. दिनेशराय द्विवेदी
    जीन्स-टॉप का चर्चा कल टीवी पर भी था और एक दो प्रिंसिपलों का इंटरव्यू भी। लगता था कि वे पिछली सदी से उठ कर आए हैं।
  6. लावण्या
    मेरे मत से ब्लोगीँग है
    Freedom of expression
    जिसका जो जी मेँ आता है,
    वही लिख देता है -
    जब कोई सही भी लिखे,
    उसीको ,
    टीप्पणी बुरी या अपमानजनक भी
    मिल जाती है -
    (I have had that experience )
    लोगोँ के मन की थाह तो ईश्वर भी नहीँ पायेँगेँ
    - लावण्या
  7. Arkjesh
    चर्चा अच्छी लगी । विपरीत टिप्पणियां करना एक महंगा काम है, और दूसरी मेहनत करके कुछ लिखो भी और न प्रकाशित होने का खतरा । आलोचनत्मक टिप्पणियां सह पाना मुश्किल काम है ।
    यद्यपि आपने सही कहा है कि लाभ उसी से होता है ।
  8. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    बहुत सेण्टीमेण्टल पोस्ट! इतना सेण्टीमेण्टलात्मक ठेलेंगे तो हम जैसे ढीला ढाला पजामा-कुरता पहनने वाले के पास सिंघल साहब के कैम्प में जाने भर का ऑप्शन बचेगा।
    (वैसे जीनाइटिस ग्रस्त बालायें दर्शनीया होती तो हैं।)
  9. Shiv Kumar Mishra
    ड्रेस कोड को लेकर किये जाने वाले ज्यादातर डिस्कशन खतमतम होते हैं. सिंघल साहेब को तमाम गलतफहमियां हैं. एक यह भी कि भारतीय संस्कृति उनकी वजह से बची हुई है. बच्चे का आपको जगाकर पानी का गिलास देने वाली बात बहुत अच्छी लगी.
    टिपण्णी चर्चा पढी. अच्छी लगी. आप आजकल डंडा लेकर टिप्पणी करने क्यों जाते हैं? कीबोर्ड काफी नहीं है क्या?
  10. महामंत्री तस्‍लीम
    स्‍त्री सौंदर्य को उभारने में कपडों का महत्‍वपूर्ण योगदान है, इससे तो कोई इनकार नहीं कर सकता। बाकी आप स्‍वयं समझ सकते हैं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }
  11. dr anurag
    .अभिषेक का कहना ठीक है ..लोग दुकानों पे टंगी जींस को क्यों नहीं छेड़ते ……..वैसे फ्रांस में भी कल बुर्के पहनने पर प्रतिबंध लग गया है .देखे अब कैसी प्रगतिशील बहसे होती है टी वी ओर अखबारों में ……आइला!!!!!!!!!!! ब्लोगों पे भी……
    ओर हाँ
    इस तरह के “बाज़ार प्रयोजित डे’ पर आपने दो दिन पहले भावुक होकर एक “सेंटी मेंटालाना चिटठा चर्चा” कर कितने पाठको को भावुक कर दिया था …हाय हमें लगा कवि ह्रदय शुक्ल जी कितने सेंटी है….आज आप अगेंस्ट हो गए .हाय ये पलटी क्यों ?
  12. dr anurag
    ओर हाँ ऐसे शीर्षक देकर क्यों सिंघल साहब को मुफ्त में पबलीसिटी देते है ..?
  13. अजय कुमार झा
    का बात है शुकल जी…हमरे तो पते नहीं था की आप यहुन चर्चियाते हैं..और का चर्चा रही है..एक दम फाड़ चीर दिए हैं…ऊपर से एगो फोटो भी लगा दिए हैं..ई बचिया का कानपुर के कोलेज में पढ़ती है…..?
  14. अमर कुमार

    भाई जी, यह शिकायत फिर दोहरा रहा हूँ, आपकी ( आपके पोस्ट के ) फ़ीड नहीं मिल रही है । मैं इतना निट्ठल्ला आदमी रोज रोज आपकी गली के चक्कर कब तक लगाऊँ ? इस ओर आपकी उपेक्षा देख प्रार्थी जनसूचना अधिकार का उपयोग करने को बाध्य होता जा रहा है । फिर न कहना कि..
    रही बात टिप्पणियों की.. तथाकथित अस्वस्थ टिप्पणियों को उदार+सहज सोच की ठँडाई पी कर स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं दिखती । ब्लागजगत मे खट्टा मीठा तीता चरपरा कड़वा सब कुछ है । अपनी अपेक्षाओं को टिप्पणी में देना टिप्पणीकार के सोच पर कोई प्रश्नचिन्ह तो नहीं ?
    शायद मैं अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रहा हूँ, अस्तु इति टिप्पणीः

    चलते चलते.. .. अहँ को दुलराने वाली टिप्पणियों से आख़िर घाटा किससो होता है ?
    टिप्पणीकार को.. ?
    नहीं, कत्तई नहीं !

  15. Anonymous
    सोए से जगाकर पानी देना, यही तो फ़ादर्स डे होता है। :) मुझे बेटियों के कितने सारे अमूल्य उपहार याद आ गए।
    आपने उदारवादी और अनुदारवादी पितृसत्ता वालों में अन्तर देखा? उदारवादियों को उभार दिखने नहीं चाहिए,अनुदारवादियों को उभारवालियाँ ही नहीं दिखनी चाहिए। अतिउदारवादी ऐसी किसी आशंका को जन्म ही नहीं लेने देते।
    घुघूती बासूती
  16. विनोद कुमार पांडेय
    ऐसे चर्चे हर साल जुलाई मे शुरू होते है,
    और 15 दिन मे ख़त्म हो जाते है,
    अच्छा व्यंग लिखा आपने,
    धन्यवाद,
  17. rachna
    पोस्ट पर दो बार आयी सुबह जब पब्लिश हुई और
    फिर अभी . पोस्ट पर कमेन्ट करने से क्या होगा
    तालिबान सभ्यता के पुजारी ड्रेस कोड लगाते
    रहे गए और उदारवादी ड्रेस कोड नहीं ड्रेस उतारते
    रहेगे . इस झमेले मे जिस पर कोड लगाया हैं
    वो क्या चाहती हैं इस की चर्चा पता नहीं कब होगी
    जैसे एक पोस्ट पर आपने कमेन्ट मे कहा हैं
    रोने से आंखे सुंदर हो जाती हैं वैसे ही यहाँ ज्ञान
    के कमेन्ट मे (वैसे जीनाइटिस
    ग्रस्त बालायें दर्शनीया होती तो हैं।) कहा गया हैंं
    बाकी यहाँ से आगे वाही लिखना हैं जो घुघूती
    बासूती का कमेन्ट हैं
    सादर
    रचना
  18. PN Subramanian
    सूपर सर जी सूपर!
  19. ताऊ रामपुरिया
    हरी हर हरी हर..आज तो पोस्ट, टिपणि और सब कुछ पसंद आया. कुछ बाकी ही नही बचा अब क्या टिपियायें?
    रामराम.
  20. Dr.Manoj Mishra
    बेबाक चिंतन-सुंदर पोस्ट .
  21. कौतुक
    ड्रेस कोड तो हमारे दफ़्तर में भी है. सोमवार को पूर्णत: फ़ोर्मल (टाई सहित) वृहस्पतिवार तक बिना टाई के फ़ोर्मल और शुक्रवार को जीन्स (फटे डिजाइन और स्टीकर रहित), कैजुअल जूते और टी शर्ट (कॉलर वाली). लड़्कियों के लिये स्लीव्लेस, लाइक्रा, लो रेज वगैरह की अनुमति कभी भी नही है.
    एक रैशनल थिन्किंग की जरूरत है. हमारा समाज जब भी कोइ कदम उठाता है लोग अतिवादी होने लगते हैं. छूट मिली तो युवा कॉलेज में पार्टी वाले ड्रेस पहनने शुरु कर दें, व्यव्स्थापक ने कड़ाई किया तो कौन से तरह का जीन्स पता हो ना हो सब के सब प्रतिबंधित कर दिया.
  22. रंजना
    आज बहुत से रंग एक साथ समेट कर डाल दिए आपने अपनी पोस्ट में…..लेकिन कुल्लम कुल यह कि सारे ही रंग बड़े भाए….
  23. समीर लाल
    मस्त आलेख है.
    वाकई मजबूरी कहिये या आदत-मैं तो यहाँ पढ़ाने भी जाता हूँ तो अक्सर जानकारियाँ हास्य-व्यंग्य-विनोद के माध्यम से ही देता हूँ और मैने देखा है कि छात्रों में उसकी ग्राह्यता ज्यादा रहती है. :)
    अक्सर कोशिश होती है कि हँसते हँसाते ही अगर कुछ जानकारी बाँटी जाये तो क्या नुकसान है. बस, इसलिए.
  24. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    बढि़या फोटू, आप भी युवाओं को रिझने का गुरू जान ही गये
  25. संजय सिंह
    जींस-टाप में उभार दिखते हैं :
    ड्रेस कोड और इससे जुडी परिचर्चा विशेष मायने रखती हैं उनलोगों के लिए जो इन परिचर्चा में सामिल होतें हैं और सामाजिक दर्शन को अपने डंग से बताने की कोशिश करते हैं, और रही बात समाज के पथ पर्दर्शन का तो उसमे सिक्षा , सभ्यता और संस्कृति का एक साथ समन्वय होना जरुरी हैं……….यह मेरा मानना हैं
    हैप्पी फ़ादर्स डे:
    आपके छोटे द्वारा पानी लाना अच्छा लगा.
    तब तो हो चुका लिखना
    “मेरी समझ में विपरीत टिप्पणियां खुदा की नियामत की तरह होती हैं। उनसे सीखने का अवसर चूकना बेवकूफ़ी ही होती है।” …… आपकी यह बात मुझे बहुत पसंद आई.
  26. क
    मैं आपकी बात से सहमत हुं ड्रेस कोड दोनो के लिये होना चाहिये। आगरा के सेण्ट जौंस कालेज मे जब हम पढते थे तो ड्रेस कोड नही थ लेकिन हमारा आखिरी साल पुरा होते ही वहां ड्रेस कोड लागु हो गया जो दोनो के लिये था।
    एक बात मैं कहना चाहुंगा की अगर ड्रेस कोड ना हो तो अश्लिलता की ज़द मे आने वाले कपडे लडकियां ही पहनती हैं पता नही अपना ज़िस्म दिखाने मे उन्हे क्या मज़ा आता है?
    लेकिन जब दिखते ज़िस्म को गौर से देखो तो छोटे कपडें को खिचं कर बडा करने की कोशिश करती है ऐसा क्यौं? जब शर्म आती है तो ऐसा कपडा पहनते ही क्यौं हो?
  27. काशिफ आरिफ
    मैं आपकी बात से सहमत हुं ड्रेस कोड दोनो के लिये होना चाहिये। आगरा के सेण्ट जौंस कालेज मे जब हम पढते थे तो ड्रेस कोड नही थ लेकिन हमारा आखिरी साल पुरा होते ही वहां ड्रेस कोड लागु हो गया जो दोनो के लिये था।
    एक बात मैं कहना चाहुंगा की अगर ड्रेस कोड ना हो तो अश्लिलता की ज़द मे आने वाले कपडे लडकियां ही पहनती हैं पता नही अपना ज़िस्म दिखाने मे उन्हे क्या मज़ा आता है?
    लेकिन जब दिखते ज़िस्म को गौर से देखो तो छोटे कपडें को खिचं कर बडा करने की कोशिश करती है ऐसा क्यौं? जब शर्म आती है तो ऐसा कपडा पहनते ही क्यौं हो?
    मेरे इस सवाल का जवाब आज तक नही मिला. जितने प्राईवेट बिज़नेस कालेज है उनमें से ज़्यादातर मे ड्रेस कोड है क्यौंकी इससे सब एक समान दिखते है। आपको नही लगता की जब लडकी को जीन्स पहनने की इजाज़त दी जाती तो उसकी जीन्स कमर से काफ़ी नीचे कुल्हे के काफ़ी करीब आ जाती है और काफ़ी चुस्त हो जाती है इस हालत मे लडकी ने जीन्स के अन्दर क्या पहना है, उसका शेप क्या है? उसका बान्र्ड क्या है? रंग क्या है? और वो कहां से शुरु हो कर कहां खत्म हो रही है?
    टाप ऐसा होता है जिसमे से पुरी कमर दिखती है, और अकसर इतना महीन होता है अन्दर पहने हुऎ वस्त्र का रंग भी दिखता है और ये भी दिखता है की कौन से हुक मे ये लगा हुआ है।
    अब आप बताये इस लिबास को आप शालीन कहेंगे
  28. amit
    ड्रेस कोड बेकार की ही चीज़ है, स्कूल तक ठीक है कि बच्चे छोटे और नादान होते हैं। और ड्रेस कोड की वकालत करने वालों का यह तर्क, कि गरीब में अमीर के कपड़े देख हीन भावना आएगी, बिलकुल बकवास ही है, कम से कम कॉलेज के छात्रों पर नहीं लागू होना चाहिए। सिर्फ़ कपड़े एक से होने के कारण क्या गरीब अमीर का अंतर छुप जाएगा, गरीब छात्र को दूसरे के बारे में पता न होगा कि वह अमीर है कि नहीं! हीन भावना आनी है तो वैसे भी आ जाएगी, कपड़े सांतवना न देंगे हीन भावना से ग्रसित छात्र को। रही बात रूढ़ी वादी लोगों की जो वाहियात तर्क देते हैं कि लड़कियों के उभार दिखते हैं तो वे क्या चाहते हैं? क्या सलवार-कमीज़ में उभार नहीं दिखते? या साड़ी ब्लाउज़ में नहीं दिखते? ऐसे लोगों से अक्ल की बात करना ही अपना सिर दीवार में मारना है जी!
    बाकी क्या कहें, विचारों और उनकी फ्लाईट के बारे में तो आप लिख ही दिए हैं अच्छा खासा, अपने पास कहने को फिलहाल कुछ बाकी नहीं! ;)
  29. K M Mishra
    अनुप जी राग दरबारी भाग-2 लिखने का प्रयास किया है । जरा पढ कर बतायें कि नमक मिर्च, मसाला ठीक मिक्स किया है कि नहीं आपके अनुज ने ।
    वैसे फोटो लगता है उसी कन्या की लगाई है जिनका दुपट्टा चोरी चला गया था और शिव कुमार मिश्र जी ने बड़े विस्तार से उस कन्या के दुख का वर्णन किया है अपनी पोस्ट में ।
  30. Abhishek
    आपका ब्लॉग और आपकी बातें दोनों अच्छी लगी.
  31. venus kesari
    लिखने को मौजे बाहारा है
    हम ये देख के हैरां हैं :)
    वीनस केसरी
  32. RAJ SINH
    आनंद ही आनंद ज्ञान ही ज्ञान .लेख और टिप्पणियां सभी में चेतना झलकती है .
    अब क्या पहने क्या नहीं , पहनने वाले / वाली पे छोडा जाये .उसे भी ‘अभिव्यक्ति ‘ की आजादी क्यों न मान लें .
  33. सागर नाहर
    मजेदार पोस्ट..
    कन्या का फोटो को देखकर सिंघल साब भी मन ही मन पछताते होंगे कि क्यों ड्रेस कोड की वकालात की।
    :)
  34. berojgar
    “इस तरह के पहनावे में लड़कियों के उभार ज्यादा साफ़ दिखते हैं इसलिये विद्यालयों में जींस-टाप पर प्रतिबंध उचित हैं।” इस लाइन को आप ने काफी बोल्ड अक्षरों में लिखा है लोगों को पढ़ कर ही आनंद की अनुभूति हो रही है.
  35. Nishant
    मैं फोटो को बड़ा करके देखना चाहता था. उसपर क्लिक किया तो उस कमसिन फूल की जगह पर पादप जगत का फूल दिखा. मुझे आपने फूल क्यों बनाया जी!
  36. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] जींस-टाप, फ़ादर्स-डे और टिप्पणी-चिंतन [...]

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