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तरही कविता, तरह-तरह की कविता
By फ़ुरसतिया on May 30, 2009
तरही गजल शिवकुमारजी को इत्ता भा गयी कि उसकी तर्ज पर तरही कविता लिखने के अपना निर्माणाधीन स्कूल छोड़कर शुरू हो गये और कहते भये:
अब आप किसी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र देख लें वह क्या है- एक संकल्प कविता ही तो। योजना आयोग की रपटें एक प्रबन्ध काव्य है। कोई प्रोजेक्ट रिपोर्ट हो, कोई शानदार प्रजेन्टेशन हो सब कविता ही तो हैं। जितने अच्छे अलंकार सजा-बजा दिये उत्ती अच्छी कविता हो गयी।
कविता को इत्ता बदनाम सा कर दिया होगा कि कवि अपने को कवि कहने में शरमाता है। कोई सफ़ल व्यक्ति कवि हो तब तो उसका कवि होना सोने में सुहागा माना जाता है लेकिन कोई सिर्फ़ कवि हो तो उसको सफ़ल मानने में लोग शरमाते से हैं।
बहरहाल इत्ती लफ़्फ़ाजी तो हम ऐसे ही कर लिये ताकि आप इस झांसे में आ जायें कि हम कोई ऊंची बात कर रहे हैं। लेकिन सच में ऐसा है नहीं। हम तो ऐसे ही कुछ इधर-उधर की ठेल रहे हैं।
हमें तो लगता है कि कविता को स्तर उठाने बोले तो भाव बढ़ाने के लिये दिन-प्रतिदिन की बातचीत में कविता से संबंधित शब्द ठेलते रहने चाहिये ताकि कविता का प्रचार हो। जैसे कि:
छोटी पार्टियों के लिये कहा जा सकता है- गठबंधन सरकार में छोटी पार्टियों से निर्वाह छोटी बहर की गजल लिखने जैसा दुरूह काम है।
एक ही परिवार वालों की कई पद पाने की इच्छा के लिये कहा जा सकता है- इन
ससुरों को अनुप्रास अलंकार के अलावा कुछ आता भी नहीं, भाता भी नहीं।
चुनाव में हारी हुई पार्टी की नेता अपना वात्सल्य रस त्यागकर
कार्यकर्ताओं से रौद्र रस में बतियाने लगी। वे तब भी खुश थे क्योंकि उनको रौद्र रस वीभत्स रस की आशंका थी।
अतिशयोक्ति(लफ़्फ़ाजी) अलंकार में महारत हासिल किये बिना चुनाव लड़ना ठीक
उसी तरह है जैसे किसी बल्लेबाज का बिना बल्ले के बैटिंग करने का प्रयास
करना।
ब्लाग जगत में कविता के साथ लफ़ड़ा हुआ। यहां कोई स्थाई गुरू/चेला नहीं
बन पाया। बल्कि जिस-जिसने कोई गुरू बनाया वो -वो चेला गया काम से। उसका
लिखना बंद हो गया। पहले गिरिराज जोशी ने समीरलालजी को गुरु बनाया उनका लिखना बंद हो गया। फ़िर विवेक सिंह ने शिवकुमार मिश्रजी को गुरुजी कहना शुरू किया वे भी अस्थाई रूप से लिखत-पढ़त से बाहर हो लिये।
निष्कर्ष निकाला जा सकता है गुरु लोग कविता के लिये खतरा हैं।
अब कुछ बात तरही कविता की भी कर ली जाये। शिवकुमार मिश्र ने मंदी और काला को लपेटते हुये तरही कविता लिख डाली। अब काला की तर्ज पर बाला,लाला,हाला, ताला,काला, डाला,साला को जुटाते हुये तरह-तरह की कविता/तुकबंदी पेश की जा सकती है। अर्थ भले ही कुछ न निकले। कह देंगे- मेरी कविता के अर्थ अनेकों हैं/तुमसे जो लग जाये लगा लेना।
तो किया जाये शुरू जो होगा देखा जायेगा।
कम्यूटर भी दिहिस समर्थन, नेट से फ़ौरन जोड़ ही डाला,
ब्लाग देखते ताज्जुब हो गया, बुझा पहेली रहे हैं लाला,
यह दिन देखन को बाकी थे, मंदी लाई दिन काला ।
ज्ञानदत्तजी गाड़ी हाकैं, देखा ट्रक एक बढ़िया वाला
साथ घूमते ट्रक ड्राइवर के,यदि होता समय जवानी वाला।
ट्रक वाले हैं मौज मनाते, चाहे कोई पकड़े साला
रेल की हालत बिगड़ रही है, मंदी लाई दिन काला ।
रामप्यारी थी मिली किचन में हाल कान में सब कह डाला,
सब झगड़े की जड़ ताऊ हैं, यही कराते सब व्हाइट-काला,
हमें विश्व सुंदरी के लिये न भेजा, करते हैं हीला-हवाला,
पैसे होते तो मैं खुद ही जाती,मंदी लाई दिन काला ।
पप्पू पास हुआ दसवीं में, मम्मी खोलिन बक्से का ताला,
लाओ मिठाई सबके खातिर, रसगुल्ला लाओ बढ़िया वाला,
मचा तहलका घर आंगन में,डांस हुआ फ़िर बीड़ी वाला,
डीजे के बिल ने किया कबाड़ा,मंदी लाई दिन काला ।
तरही कविता के कुछ नमूने पेश किये गये। आप भी कुछ खुटखुटाइये।
बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मिट गईं, कोई नहीं रोने वालाआमतौर हमारे यहां कवि को बड़ी वैसी नजरों से देखा जाता है। कोई अगर अपने को कवि के रूप में पेश करे तो लोग समझते हैं कि ये भैया ऐं-वैं टाइप ही हैं। जबकि देखा गया है कि दुनिया में जो हो रहा है सब कविता ही तो है।
बैंक-वैंक तो कितने डूबे, कोई नहीं गिनने वाला
दशकों लगे जिन्हें बनने में, घंटों में वे उखड़ गए
जो हैं बचे डरे जीते हैं, मंदी लाई दिन काला ।
अब आप किसी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र देख लें वह क्या है- एक संकल्प कविता ही तो। योजना आयोग की रपटें एक प्रबन्ध काव्य है। कोई प्रोजेक्ट रिपोर्ट हो, कोई शानदार प्रजेन्टेशन हो सब कविता ही तो हैं। जितने अच्छे अलंकार सजा-बजा दिये उत्ती अच्छी कविता हो गयी।
कविता को इत्ता बदनाम सा कर दिया होगा कि कवि अपने को कवि कहने में शरमाता है। कोई सफ़ल व्यक्ति कवि हो तब तो उसका कवि होना सोने में सुहागा माना जाता है लेकिन कोई सिर्फ़ कवि हो तो उसको सफ़ल मानने में लोग शरमाते से हैं।
बहरहाल इत्ती लफ़्फ़ाजी तो हम ऐसे ही कर लिये ताकि आप इस झांसे में आ जायें कि हम कोई ऊंची बात कर रहे हैं। लेकिन सच में ऐसा है नहीं। हम तो ऐसे ही कुछ इधर-उधर की ठेल रहे हैं।
हमें तो लगता है कि कविता को स्तर उठाने बोले तो भाव बढ़ाने के लिये दिन-प्रतिदिन की बातचीत में कविता से संबंधित शब्द ठेलते रहने चाहिये ताकि कविता का प्रचार हो। जैसे कि:
निष्कर्ष निकाला जा सकता है गुरु लोग कविता के लिये खतरा हैं।
अब कुछ बात तरही कविता की भी कर ली जाये। शिवकुमार मिश्र ने मंदी और काला को लपेटते हुये तरही कविता लिख डाली। अब काला की तर्ज पर बाला,लाला,हाला, ताला,काला, डाला,साला को जुटाते हुये तरह-तरह की कविता/तुकबंदी पेश की जा सकती है। अर्थ भले ही कुछ न निकले। कह देंगे- मेरी कविता के अर्थ अनेकों हैं/तुमसे जो लग जाये लगा लेना।
तो किया जाये शुरू जो होगा देखा जायेगा।
तरही कविता टेक ली है कविकुल शिरोमणि शिवकुमार मिश्र से
ब्लाग पोस्ट जब लिखने बैठे, बढिया मूड बना डालाकम्यूटर भी दिहिस समर्थन, नेट से फ़ौरन जोड़ ही डाला,
ब्लाग देखते ताज्जुब हो गया, बुझा पहेली रहे हैं लाला,
यह दिन देखन को बाकी थे, मंदी लाई दिन काला ।
ज्ञानदत्तजी गाड़ी हाकैं, देखा ट्रक एक बढ़िया वाला
साथ घूमते ट्रक ड्राइवर के,यदि होता समय जवानी वाला।
ट्रक वाले हैं मौज मनाते, चाहे कोई पकड़े साला
रेल की हालत बिगड़ रही है, मंदी लाई दिन काला ।
रामप्यारी थी मिली किचन में हाल कान में सब कह डाला,
सब झगड़े की जड़ ताऊ हैं, यही कराते सब व्हाइट-काला,
हमें विश्व सुंदरी के लिये न भेजा, करते हैं हीला-हवाला,
पैसे होते तो मैं खुद ही जाती,मंदी लाई दिन काला ।
पप्पू पास हुआ दसवीं में, मम्मी खोलिन बक्से का ताला,
लाओ मिठाई सबके खातिर, रसगुल्ला लाओ बढ़िया वाला,
मचा तहलका घर आंगन में,डांस हुआ फ़िर बीड़ी वाला,
डीजे के बिल ने किया कबाड़ा,मंदी लाई दिन काला ।
तरही कविता के कुछ नमूने पेश किये गये। आप भी कुछ खुटखुटाइये।
बैठे बैठे फुरसतिया जी ने कविता सा कुछ लिख डाला
यह दिन देखन को बाकी थे, मंदी लाई दिन काला ।
टांग खींचने की कोशिश की है…पिटाई न पड़ जाए इसकी आशंका है…उम्मीद है ये छोटन का उत्पात माफ़ करेंगे
पूजा का कहना है कि छोटन ने उत्पात कर दिया. मुझे तो नहीं लगता. माफी की बात करने का कोई कारण तो दिखाई नहीं देता.
आपका, किसी भी और किसी की भी चर्चा को रोचक बनाने का अंदाज बहुत भाया। शब्दों, वाक्य, को व्यंग्य की घूंटी किस कदर पिलायी है कि पढने वाला भी नशे में आ जाता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
रौद्र की आशंका में रौद्र मिलने से प्रसन्न होने की बात जमी नहीं… दूसरा रौद्र वीभत्स होना चाहिए यानि
चुनाव में हारी हुई पार्टी की नेता अपना वात्सल्य रस त्यागकर कार्यकर्ताओं से रौद्र रस में बतियाने लगी। वे तब भी खुश थे क्योंकि उनको वीभत्स
रस की आशंका थी
:))
हां मास्साब, आप सही समझा रहे हैं। हम वही लिखना चाह रहे थे जो आप बता रहे हैं। लेकिन घंटी बज गयी दुकान (आफिस) जाने की सो चल गये और आपके अलावा और कोई बताइस भी नहीं। आप बताये तो ठीक कर दिये । शुक्रिया!
खुलासा किया जाने का अग्रिम धन्यवाद!
तरही की तो तेरही मना दी आपने……
जबरदस्त लिखा है…..एकदम जबरदस्त…वाह !!!
फुरसतिया ने भी शिव जैसे खुद को कविवर कह डाला
एक रंग के होने पर भी देखो कितना अंतर है
कोयल भी काली होती है होता कव्वा भी काला
फुरसतिया जी का प्रयास स्तुत्य है…
नीरज
और आपकी कविता तो तरही हो ही नहीं सकती इसमें तो तेरही से ज्यादा कुछ दिख रहा है !
तरही कविता मजेदार लगी, अगली कविता का इंतजार । हम भी समीर जी से सहमत है, अनूप जी बहुत दार्शनिक हो लिए इस पोस्ट में
रही बात बदनामी की तो कुछेक कवियों की वजह से पूरी बिरादरी बदनाम हो गई, ये कवि चेप हो जाते हैं, जबरन कविता झिलवाते हैं तो क्या करें, जनरलाइज़ करना एक आम समस्या है इसलिए लोग भी त्रस्तिया और फ्रस्टिया के लेबल लगा दिए कवियों पर, न आम जन की गलती न बाकी कवियों की!
रामराम.
सौजन्य से नया शग़ल जाना और माना भी , मनोरंजक है | वैस किसी से दुश्मनी निकालने का अच्छा ( गुरु नहीं कहूँगा ) मंत्र बता दिया ; जिससे शत्रुता हो उसे शिष्य मानना ,मानना क्या पुकारना शुरू कर दे मानद [स्वयम्भू ] गुरुडम मिला नहीं कि वह तो गया गया ही ; वह और किसी से उखड़े या न उखड़े आप से आप के आस-पास होने सेतो उखड़ने ही लगेगा |
भाई जी, अभिवादन स्वीकारें ।
फ़ीड नहीं मिल पा रही है, चलो देरे सही !
पर दो दिनों में यह तीसरी टिप्पणी है, पिछली दो शायद माडरेट हो गयी ।
यदि कारण बता देते, तो चेला सुधार की सँभावना तलाशता ।
आप जैसे उदारमना अग्रज से इतनी अपेक्षा है ।
वैसे कविताई तहरी की यह डिश मज़ेदार तो होनी ही थी,
ज्ञानवर्धक भी है ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
vah vah!!!