http://web.archive.org/web/20101217024339/http://hindini.com/fursatiya/archives/645
रविरतलामी जी ने इतवार को चिट्ठाचर्चा में ट्विटर के बारे में विस्तार से जानकारी दी तो हम भी बन गये उधर के सदस्य और लगे ट्विटरियाने। अनजाने में जितने लोगों के नाम मेरे जीमेल खाते में थे सबको ट्विटर खोलने का निमंत्रण चला गया। अब दोस्त लोग पूछने लगे इसमें कैसे खाता खोलें, क्या लिखें, कैसे लिखें? आदि-इत्यादि। अब हमको कुछ पता हो तो बतायें। धीरे-धीरे वहां ही दोस्तों ने कुछ पाठ बताया। पता चला वहां हटमल(HTML) नहीं चलता। जिसको जबाब देना हो उसके संदेश के आगे के तीर को क्लिक करना चाहिये। आदि-इत्यादि। वगैरह-वगैरह।
ट्विटर के और भी व्यवहारिक उपयोग हैं। दोहा,चौपाई,सोरठा,हायकु लिखने वाले ट्विटर का उपयोग इसके लिये कर सकते हैं क्योंकि ट्विटर शब्द संख्या बताता रहता है कि इत्ते शब्द खर्च कर चुके हैं आप।
मैंने सोचा एकलाइना लिखने के लिये भी ट्विटर का उपयोग किया जा सकता है। एकाध किये भी लेकिन अभी मजा नहीं आया। कुछ दोस्तों ने मौज लेते हुये यह भी लिखा कि यहां फ़ुरसतिया टाइप पोस्ट कैसे लिखी जायेगी। हमारा कहना था और है भी कि फ़ुरसतिया टाइप पोस्ट भी वाक्यों में लिखी जाती है और वाक्य यहां आसानी से बन जाते हैं।
अभी तो ज्यादातर साथी अपनी पोस्टों के लिंक देने में इसका उपयोग कर रहे हैं। हम भी तो वही कर रहे हैं अभी और क्या कर रहे हैं? देखिये आप भी ट्विटरिया के कैसा लगता है।:)
बाद में उत्पादन शालाओं से जुड़े देखा तो यहां भी फ़ीडिंग चालू है। आगे का काम होने के लिये पीछे से फ़ीडिंग जरूरी है।
अब यहां ब्लागिंग में धंसे तो पाया कि यहां भी फ़ीड विद्यमान है। फ़ीड ठीक है तो आपकी पोस्ट की सूचना लोगों तक पहुंच रही है। फ़ीड गड़बड़ है तो आपका लिखा राहत सामग्री की तरह इधर-उधर छितराया रहेगा कभी जरूरतमंद तक नहीं पहुंचेगा।
राहत सामग्री और जरूरतमंद वाली बात से शायद कोई संवेदनशील पाठक खिन्न हो सकता है इसलिये इसकी जगह यह लिखना शायद ज्यादा सही होगा कि फ़ीड गड़बडा़ने का मतलब है दूध की बोतल का ढक्कन निकल जाना। दूध सारा बह रहा है लेकिन बच्चे के मुंह तक नहीं पहुंच रहा है।
तो हुआ यह हुआ क्या अक्सर यह होता है हमारे इस फ़ुरसतिया ब्लाग की फ़ीड अक्सर गड़बड़ा जाती है और हमारी पोस्ट चिट्ठाजगत में दिखती नहीं। पोस्ट न दिखने का मतलब यह हुआ कि जो पाठक चिट्ठाजगत देखकर पोस्ट पढ़ते हैं उनको पता ही नहीं चलेगा कि हमने कोई नयी पोस्ट भी लिखी है। जब उसको पता ही नहीं होगा तो वह हमारी पोस्ट पढ़कर बोर होने की बजाय किसी और की पोस्ट पढ़कर बोर होगा बेचारा। बोर तो होना ही है लेकिन यह बड़ा खराब लगता है न कि पाठक के लिये बोरियत के विकल्प के कम हो जायें। पाठक का दर्द महसूस करके हम भी अक्सर बोर हो लेते हैं कि बताओ बेचारा पाठक हमारी गड़बड़ फ़ीड के कारण न जाने किधर बोर रहा होगा।
चिट्ठाचर्चा में कुछ गड़बड़ लगती है। सबसे नयी पोस्ट इतवार को लिखी पोस्ट दिख रही है जबकि इतवार से कल तक तीन और पोस्टें लिखी जा चुकी हैं। ये भैया फ़ीड जो न कराये।
अभी देखा तो चिट्ठाजगत हमें नहीं दिख रहा है और ब्लागवाणी में हमारा ब्लाग नहीं दिख रहा है। बड़े लफ़ड़े हैं इस राह में।
कल सुबीरजी के ब्लाग पर खामोशी से संबंधित तरही मुशायरा पढ़ा। एक से एक शानदार गजलें साथी ब्लागरों की देखीं तो जी खुश हो गया।
सुबीरजी की पोस्ट से ही पता चला कि कुछ नामचीन शायरों ने कुछ नये और कम ख्याति वाले शायरों के शेर नामचीन शायरों ने अपने बनाकर सुना डाले और सुनाते गये, सुनाते गये। पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हुआ और थोड़ा दुख भी।
इसीलिये भैया हम शेरो-शायरी के चक्कर में नहीं पड़ते। पता चला भानुमती के कुनबे से अनगढ़ शब्द संचयन को मेहनत करके , ठोंक-पीट कर मार्शडन ले( Marshden lay) सा चुस्त-दुरुस्त बना के धांसू सा शेर बनाऊं और उसे कोई नामचीन शायर ले उड़ा और अरे ये तो चलता है कहते हुये अपना कहकर सुनाता रहे।
बहरहाल अब जरा खामोशी पर हमारी बात पढिये। पढ़ते समय आपको खामोश रहने की कौनौ जरूरत नहीं आप इसे गुनगुनाते हुये पढ़ने की कोशिश भी कर सकते हैं। शायद सफ़ल हो ही जायें। लेकिन हम फ़िर कहते हैं कि भैया फ़ैशन के दौर में हम सफ़लता की कौनौ गारण्टी नहीं ले सकते।
चहककर बोल बैठे वे अब से तेरा है नाम खामोशी।
हारे, पिटे नेता जब चुनाव विश्लेशषण के लिये बैठे
उनके चेहरों पे इफ़रात में लिपट जईयो री तुम खामोशी।
लड्डू का आर्डर देकर नेता गर कोई पिट जाये मतगणना में
उसके चेहरे पर वरक सी लिपट जईयो री तुम खामोशी।
किसी दहेज-मंगते को जब कोई कन्या मंडप से दुत्कारे
शर्मिंन्दगी संग उसके थोबड़े पे चिपक जईयो री तुमखामोशी।
सरकार आने पर सेंन्सेक्स कैंच लेते फ़ील्डर सा उचकता है,
दंगा हुआ तो लुढ़क जायेगा, ओढ़ लेगा चादर-ए-खामोशी।
सुबह,दोपहर,शाम की सब मौजूद हैं यहां खामोशियां
आपको कौन सी दरकार है बताइये तौल दूं वो खामोशी।
पुराना फ़ैशन है अब कहां चलन में है नीमखामोशी
अब तो फ़ैशन में है जी गुलमोहर, अमलतास कीखामोशी।
गम,आंसू,बेचैनी,हैरानी,बेबसी, उदासी सब तो हाजिर हैं
लेकिन शेर मुकम्मल नहीं होता तेरे बिना री खामोशी।
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
ट्विटर,फ़ीड और खामोशी
ट्विटर, हटमल और फ़ुरसतिया :
ट्विटर के बारे में सुनते तो बहुत आये थे और अपसे साथ के तमाम साथी ब्लागर उधर पहले से ही मौजूद थे। आलोक तो शायद अब ब्लागिंग पार्टी छोड़कर ट्विटर पार्टी ही ज्वाइन कर चुके हैं। सच तो यह है उनकी पोस्टें शुरू से ही ट्विटर के फ़ार्म में थीं। ट्विटर तो बाद में आया।रविरतलामी जी ने इतवार को चिट्ठाचर्चा में ट्विटर के बारे में विस्तार से जानकारी दी तो हम भी बन गये उधर के सदस्य और लगे ट्विटरियाने। अनजाने में जितने लोगों के नाम मेरे जीमेल खाते में थे सबको ट्विटर खोलने का निमंत्रण चला गया। अब दोस्त लोग पूछने लगे इसमें कैसे खाता खोलें, क्या लिखें, कैसे लिखें? आदि-इत्यादि। अब हमको कुछ पता हो तो बतायें। धीरे-धीरे वहां ही दोस्तों ने कुछ पाठ बताया। पता चला वहां हटमल(HTML) नहीं चलता। जिसको जबाब देना हो उसके संदेश के आगे के तीर को क्लिक करना चाहिये। आदि-इत्यादि। वगैरह-वगैरह।
ट्विटर के और भी व्यवहारिक उपयोग हैं। दोहा,चौपाई,सोरठा,हायकु लिखने वाले ट्विटर का उपयोग इसके लिये कर सकते हैं क्योंकि ट्विटर शब्द संख्या बताता रहता है कि इत्ते शब्द खर्च कर चुके हैं आप।
मैंने सोचा एकलाइना लिखने के लिये भी ट्विटर का उपयोग किया जा सकता है। एकाध किये भी लेकिन अभी मजा नहीं आया। कुछ दोस्तों ने मौज लेते हुये यह भी लिखा कि यहां फ़ुरसतिया टाइप पोस्ट कैसे लिखी जायेगी। हमारा कहना था और है भी कि फ़ुरसतिया टाइप पोस्ट भी वाक्यों में लिखी जाती है और वाक्य यहां आसानी से बन जाते हैं।
अभी तो ज्यादातर साथी अपनी पोस्टों के लिंक देने में इसका उपयोग कर रहे हैं। हम भी तो वही कर रहे हैं अभी और क्या कर रहे हैं? देखिये आप भी ट्विटरिया के कैसा लगता है।:)
फ़ीड, चिट्ठाजगत और हमरा ब्लाग:
हम जब ब्लागिंग में आये तब पता जला यहां भी फ़ीड होती है। फ़ीड का सबसे पहला मायने जो मैंने जाना वह यह था कि फ़ीड माने मां द्वारा बच्चे को दूध पिलाया जाना। यह फ़ीड भी केवल अपना खुद का दूध पिलाने वाली माताओं के संदर्भ में नहीं बल्कि उन माताओं के संदर्भ में जो अपने बच्चे को बोतल से भी या सिर्फ़ बोतल से ही दूध पिलाती हैं।बाद में उत्पादन शालाओं से जुड़े देखा तो यहां भी फ़ीडिंग चालू है। आगे का काम होने के लिये पीछे से फ़ीडिंग जरूरी है।
अब यहां ब्लागिंग में धंसे तो पाया कि यहां भी फ़ीड विद्यमान है। फ़ीड ठीक है तो आपकी पोस्ट की सूचना लोगों तक पहुंच रही है। फ़ीड गड़बड़ है तो आपका लिखा राहत सामग्री की तरह इधर-उधर छितराया रहेगा कभी जरूरतमंद तक नहीं पहुंचेगा।
राहत सामग्री और जरूरतमंद वाली बात से शायद कोई संवेदनशील पाठक खिन्न हो सकता है इसलिये इसकी जगह यह लिखना शायद ज्यादा सही होगा कि फ़ीड गड़बडा़ने का मतलब है दूध की बोतल का ढक्कन निकल जाना। दूध सारा बह रहा है लेकिन बच्चे के मुंह तक नहीं पहुंच रहा है।
तो हुआ यह हुआ क्या अक्सर यह होता है हमारे इस फ़ुरसतिया ब्लाग की फ़ीड अक्सर गड़बड़ा जाती है और हमारी पोस्ट चिट्ठाजगत में दिखती नहीं। पोस्ट न दिखने का मतलब यह हुआ कि जो पाठक चिट्ठाजगत देखकर पोस्ट पढ़ते हैं उनको पता ही नहीं चलेगा कि हमने कोई नयी पोस्ट भी लिखी है। जब उसको पता ही नहीं होगा तो वह हमारी पोस्ट पढ़कर बोर होने की बजाय किसी और की पोस्ट पढ़कर बोर होगा बेचारा। बोर तो होना ही है लेकिन यह बड़ा खराब लगता है न कि पाठक के लिये बोरियत के विकल्प के कम हो जायें। पाठक का दर्द महसूस करके हम भी अक्सर बोर हो लेते हैं कि बताओ बेचारा पाठक हमारी गड़बड़ फ़ीड के कारण न जाने किधर बोर रहा होगा।
चिट्ठाचर्चा में कुछ गड़बड़ लगती है। सबसे नयी पोस्ट इतवार को लिखी पोस्ट दिख रही है जबकि इतवार से कल तक तीन और पोस्टें लिखी जा चुकी हैं। ये भैया फ़ीड जो न कराये।
अभी देखा तो चिट्ठाजगत हमें नहीं दिख रहा है और ब्लागवाणी में हमारा ब्लाग नहीं दिख रहा है। बड़े लफ़ड़े हैं इस राह में।
खामोशी, तरही और तहरी:
जैसे अभी फ़ीड वाली बात बताई वैसे ही तरही मुशायरा की बात। तरही मुशायरा के बारे में जब भी पढ़ता हूं मुझे अनायास तहरी की याद आ जाती है। तहरी मतलब खिचड़ी घराने का हल्का भोजन जिसको बनाने में चावल के अलावा मौसमी सब्जियां -आलू,मटर, प्याज,गोभी,लौकी आदि डालकर बनाया जाता है।कल सुबीरजी के ब्लाग पर खामोशी से संबंधित तरही मुशायरा पढ़ा। एक से एक शानदार गजलें साथी ब्लागरों की देखीं तो जी खुश हो गया।
सुबीरजी की पोस्ट से ही पता चला कि कुछ नामचीन शायरों ने कुछ नये और कम ख्याति वाले शायरों के शेर नामचीन शायरों ने अपने बनाकर सुना डाले और सुनाते गये, सुनाते गये। पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हुआ और थोड़ा दुख भी।
इसीलिये भैया हम शेरो-शायरी के चक्कर में नहीं पड़ते। पता चला भानुमती के कुनबे से अनगढ़ शब्द संचयन को मेहनत करके , ठोंक-पीट कर मार्शडन ले( Marshden lay) सा चुस्त-दुरुस्त बना के धांसू सा शेर बनाऊं और उसे कोई नामचीन शायर ले उड़ा और अरे ये तो चलता है कहते हुये अपना कहकर सुनाता रहे।
बहरहाल अब जरा खामोशी पर हमारी बात पढिये। पढ़ते समय आपको खामोश रहने की कौनौ जरूरत नहीं आप इसे गुनगुनाते हुये पढ़ने की कोशिश भी कर सकते हैं। शायद सफ़ल हो ही जायें। लेकिन हम फ़िर कहते हैं कि भैया फ़ैशन के दौर में हम सफ़लता की कौनौ गारण्टी नहीं ले सकते।
खामोशी
उदासी छाई थी उनके झोले से लटके हुये चेहरे परचहककर बोल बैठे वे अब से तेरा है नाम खामोशी।
हारे, पिटे नेता जब चुनाव विश्लेशषण के लिये बैठे
उनके चेहरों पे इफ़रात में लिपट जईयो री तुम खामोशी।
लड्डू का आर्डर देकर नेता गर कोई पिट जाये मतगणना में
उसके चेहरे पर वरक सी लिपट जईयो री तुम खामोशी।
किसी दहेज-मंगते को जब कोई कन्या मंडप से दुत्कारे
शर्मिंन्दगी संग उसके थोबड़े पे चिपक जईयो री तुमखामोशी।
सरकार आने पर सेंन्सेक्स कैंच लेते फ़ील्डर सा उचकता है,
दंगा हुआ तो लुढ़क जायेगा, ओढ़ लेगा चादर-ए-खामोशी।
सुबह,दोपहर,शाम की सब मौजूद हैं यहां खामोशियां
आपको कौन सी दरकार है बताइये तौल दूं वो खामोशी।
पुराना फ़ैशन है अब कहां चलन में है नीमखामोशी
अब तो फ़ैशन में है जी गुलमोहर, अमलतास कीखामोशी।
गम,आंसू,बेचैनी,हैरानी,बेबसी, उदासी सब तो हाजिर हैं
लेकिन शेर मुकम्मल नहीं होता तेरे बिना री खामोशी।
किसी दहेज-मंगते को जब कोई कन्या मंडप से दुत्कारे
शर्मिंन्दगी संग उसके थोबड़े पे चिपक जईयो री तुमखामोशी।
वाह वाह..क्या गजब की बात कही है सबेरे सबेरे, शुभकामनाएं.
रामराम.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जाओ, भड़ास निकल आओ…कोई पढ़े-सुने या न पढ़े-सुने, मेरी बला से
मैं आपके लिये नहीं, अपने लिये कह रहा हूं!
अपने ब्लोग पर इश्तिहार दिखाने और कुछ पैसा कमाने के लिये यहा चट्का लगाये…
http://www.bidvertiser.com/bdv/bidvertiser/bdv_ref.dbm?Affiliate_ID=25&Ref_Option=pub&Ref_PID=236711
हिंदी में प्रेरक कथाओं, प्रसंगों, और रोचक संस्मरणों का एकमात्र ब्लौग http://hindizen.com
वीनस केसरी
आपको कौन सी दरकार है बताइये तौल दूं वो खामोशी।
वाह क्या बात है। टिवटर में ऐकाउंट तो बहुत पहले बना लिए थे टिवटराने की कौशिश करेगें । वैसे हमने देखा कि फ़ेसबुक पर भी पूरा हिन्दी ब्लोगजगत न सिर्फ़ छाया हुआ है बड़ी धूम भी मचाये हुए है। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो हमें ज्ञान जी को वहां देख कर हुआ।
यह तो बहुत सुन्दर आइडिया है। कविता “खामोशी” भी बहुत अच्छी लगी।
“फ़ीड गड़बड़ है तो आपका लिखा राहत सामग्री की तरह इधर-उधर छितराया रहेगा कभी जरूरतमंद तक नहीं पहुंचेगा।” अजब-गजब उपमायें ढूँढ़ लेते हैं आप । मजेदार ।
खामोशी की बातें बहुत अच्छी लगी