पहले लेखक एक किताब लिखकर सैकड़ों सालों के लिये अमर हो जाता था, अब सैंकड़ों लिखकर एक वर्ष की गारंटी नहीं बैठती है। - अनुज खरे
--------फ़ैशन के दौर में गारन्टी की बात करना ठीक नहीं !
आज का सबसे बड़ा संकट यही है कि नैतिकता स्वयं ही स्वार्थों की मोटी चद्दर ओढकर सो गयी है। कितना भी जगाओ, जागती ही नहीं है और यदि जाग भी गई तो घंटो कायरता की जम्हुआई ले आंखें चुराती रहती है। -DrAtul Chaturvedi
नैतिकता के खिलाफ़ चोरी की एफ़ आई आर लिखाई जाये -फ़ौरन !
आजकल नैतिक होना महान अनैतिक और अराजक
समझा जाता है- DrAtul Chaturvedi
समझा जाता है- DrAtul Chaturvedi
-----इसीलिये हम जरा नैतिकता से बचकर चलते हैं।
कुछ लोग दंगा कराने के लिये पागल हो जाते हैं और कुछ दंगे के बाद पागल हो जाते हैं - Anoop Mani Tripathi
----खूब बोला है पगलवा
सभ्य आदमी वह होता है, जिसके यहां से कभी भी, कोई वस्तु ’एक्सक्यूज मी’ कहकर उठा ली जाती है। -Arvind Tiwari
-----हम उठाये हैं यह अंश आपके लेख से। एक्सक्यूज मीं भी बोल देंगे अभी।
बीमार या गरीब होना उतना बुरा नहीं है जितना बीमारी या गरीबी का जग-जाहिर होना।- Arvind Tiwari
------ अपने यहां तो ढिढोरा पीटने का भी चलन है।
गुंडा कभी यतीम नहीं होता, उसके पीछे उसके राजनीतिक आका होते हैं- Arvind Tiwari
------ काहे नहीं होंगे भाई। अपनों का ख्याल दुनिया रखती है।
महिलाओं का दिल अटकने के मामले में ज्यादा कमजोर होता है। ये मुंआ तो हर उस चीज पर अटक जाता है , जो उसकी पडोसन के पास होगी या किट्टीपार्टी में किसी सहेली के पास दिख जायेगी। -. अर्चना चतुर्वेदी
------ महिलाओं के दिल की बात ही कुछ और होती है।
आशिकी बेहद खर्चीला काम है और इस काम में बंदे की जेब को पेचिश हो जाता है और टाइम की फ़र्म का दीवाला निकल जाता है- अर्चना चतुर्वेदी
------ विख्यात आशिक बांकेलाल के अनुभव नवोदित आशिकों के लिये। टॉपर का मतलब अब विषय का ज्ञाता न होकर सब्जेक्स्टस का मैनेजमेंट गुरु ज्यादा हो गया। - अलंकार रस्तोगी
---------एक पहुंचे हुये गुरु का बयान।
पहले पढकर टॉप किया जाता था, अब जुगाड़ को गढकर मैरिट में जगह पाई जाती है- Alankar Rastogi
-------एक टॉपर लेखक का खुलासा।
अनारकली अभी रूप के भरोसे मार खाती , कभी प्रेम के। कभी बुद्धि के, कभी ओज के, कभी तेज के। भूल ही जाती कि गुलाम में एक ही गुण होना चाहिये -’जी बेहतर’। --------Alka Pathak
------’प्यार किया तो डरना क्या ' के नशे में सब भूल गयी अनारकली।
गुलाम और बांदियों को यह पता होना चाहिये , जो हुकुम उन्हें दिया जा रहा है, उसको बजा लाना ही उनका काम नहीं है, उन्हें यह भी बताते रहना है कि उस हुकुम से बेहतर और कुछ हो ही नहीं सकता। - Alka Pathak
-----------इससे बेहतर क्या हो सकता है भला अनारकली के लिये।
मलिका बनने के लिये सिर्फ़ खरापन काफ़ी नहीं होता। उसमें कूटनीति, चाटुकारी आदि का खोट मिलाना ही पड़ता। गले में हार पहनना है तो सिर झुकाना ही पड़ता है। -Alka Pathak
---------मलिका बनने के आवश्यक सूत्र।
दीवार-दीवार अनारकली है। कहीं उसका रूप दफ़न है, कहीं उसकी बुद्धि। कहीं उसका तेज और ओज। उसकी इच्छायें, उमंगे और सपने, उसके विश्वास उसके निर्णय। -Alka Pathak
--------गली-गली शंहशांह हैं तो अपने आस-पास की अनारकलियों को दीवार में चिनवा रहे हैं।
आज Alka Pathak जी का जन्मदिन है। उनको जन्मदिन की बधाई।
ये पंच डॉ Giriraj Sharan Agrawal डॉ Ramesh Tiwari संपादित समकालीन हिंदी व्यंग्य से बिना एक्सक्यूज मी कहे लिये गये !
No comments:
Post a Comment